करवा चौथ : जानें महत्व और मुहूर्त

धर्म ग्रंथों और पौराणिक महत्वों के अनुसार इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होता है।

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हिंदू संस्कृति के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो उपवास किया जाता है उसका सुहागिन स्त्रियों के लिये बहुत अधिक महत्व माना जाता है। इस व्रत को करवा चौथ का व्रत कहा जात है।

धर्म ग्रंथों और पौराणिक महत्वों के अनुसार इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होता है।

यहां मनाया जाता है

यह व्रत उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में मनाया जाता है। इस दिन यहां अलग ही नजारा होता है। करवा चौथ व्रत के दिन एक और जहां दिन में कथाओं का दौर चलता है तो दूसरी और दिन ढलते ही विवाहिताओं की नजरें चांद देखने के लिये बेताब हो जाती हैं। चांद निकलने पर घरों की छतों का नजारा भी देखने लायक होता है। पूरा दिन पति की लंबी उम्र के लिये उपवास रखने के बाद सुहागिनें आसमान के चमकते चांद का दर्शन कर अपने पति के हाथों से निवाला खाकर अपना उपवास खोलती हैं।

करवाचौथ का व्रत सूर्योदय से पहले ही लगभग 4 बजे के बाद शुरु हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत को खोला जाता है। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है। सामान्यत: विवाहोपरांत 12 या 16 साल तक लगातार इस उपवास को किया जाता है लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं।

शुभ काल

पूजा मुहूर्त – 17:29 से 18:48
चंद्रोदय – 20:16
चतुर्थी तिथि आरंभ – 03:24 (4 नवंबर)
चतुर्थी तिथि समाप्त – 05:14 (5 नवंबर)

पूजा-विधि

1. सूर्योदय से पहले स्नान आदि करके पूजा घर की सफाई करें। फिर सास द्वारा दिया हुआ भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें।
2. यह व्रत संध्या में सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा का दर्शन करके ही खोलना चाहिए। इस व्रत में निर्जल का विधान है।
3. संध्या के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे रखें।
4. पूजन-सामग्री में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर आदि थाली में रखें।
5. चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरू की जानी चाहिए।
6. पूजा के दौरान करवा चौथ कथा सुनें या सुनाएँ।
7. चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।
8. चन्द्र-दर्शन के बाद बहू अपनी सास को थाली में सजाकर मिष्ठान, फल, मेवे, रूपये आदि देकर उनका आशीर्वाद ले और सास उसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे।

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