11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था। इस हमले के लिए अल कायदा के 19 आतंकियों ने चार विमान हाइजैक किए थे। इनमें से दो विमानों को उसने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकरा दिया था, जबकि तीसरे से पेंटागन पर हमला किया था। इस साजिश का मास्टर माइंड अल कायदा प्रमुख बिन लादेन उस समय अफगानिस्तान में था। अमेरिका ने तालिबान प्रशासन से लादेन को सौंपने को कहा था, लेकिन प्रशासन ने इनकार कर दिया था। उसके बाद अमेरिका ने अपनी सेना भेजकर तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया। उसके बाद वहां अफगान सरकार की स्थापना हुई। लेकिन 20 साल तक अमेरिका अफगानिस्तान के आंतरिक आतंकवाद से तंग आ चुका था। इस बीच हजारों अमेरिकी सैनिकों ने अपनी जान गंवाई। इससे पहले 18वीं और 19वीं शताब्दी में, अफगानिस्तान ब्रिटिश और सोवियत संघ जैसी महाशक्तियों के लिए कब्रगाह बना।
18वीं सदी में ग्रेट ब्रिटेन ने अफगानिस्तान छोड़ा
1830 में ग्रेट ब्रिटेन ने अफगानिस्तान में 20,000 सैनिक भेजे थे। इसके बाद ब्रिटेन ने मुहम्मद खान को सत्ता से बेदखल कर दिया और शाह सुजा दुर्रानी को सत्ता सौंपी। इस प्रकार ब्रिटेन ने एक नया उपनिवेश स्थापित किया। लेकिन दो साल में ब्रिटेन के लिए अफगानिस्तान पर पकड़ रख पाना मुश्किल हो गया। इस बीच ब्रिटेन के प्रति स्थानीय लोगों का विरोध जारी रहा।
जनवरी 1842 के बाद ब्रिटेन ने काबुल पर नियंत्रण खो दिया
23 नवंबर 1841 को अफगानिस्तान के लिए मध्यस्थता करने वाले सर विलियम मैक्टन की हत्या कर दी गई। जनवरी 1842 के बाद ब्रिटेन ने काबुल पर नियंत्रण खो दिया और 4,500 ब्रिटिश सैनिक काबुल से वापस बुला लिए गए। इस बीच, अफगानिस्तान में अंग्रेजों द्वारा सत्ता सौंपे गए शाह सुजा दुर्रानी की काबुल में हत्या कर दी गई और मोहम्मद खान अफगानिस्तान में सत्ता में वापस आ गए।
19वीं सदी में सोवियत संघ अफगानिस्तान से भागा
27 अप्रैल 1978 को सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में मुहम्मद दाऊद खान को सत्ता से बेदखल कर दिया। मुहम्मद दाऊद खान वामपंथी थे, लेकिन कम्युनिस्ट नहीं थे। 28 अप्रैल 1978 को सोवियत संघ ने नूर मुहम्मद तकीर को सत्ता सौंपी। सत्ता अफगान रिवोल्यूशनरी काउंसिल के नाम से स्थापित हुई। 1980 में, अफगान सेना ने 20 सोवियत सैन्य सलाहकारों को मार डाला। उसके बाद उसने सोवियत सैनिकों को मारना शुरू किया। अगस्त 1980 में, सोवियत संघ ने काबुल पर अपना 75 प्रतिशत नियंत्रण खो दिया। 1978 और 1980 के बीच, लगभग 15,000 सोवियत सैनिक मारे गए। अंतत: सोवियत संघ अफगानिस्तान से हट गया।
ये भी पढ़ेंः अफगानिस्तान में बिगड़े हालात, काबुल एयरपोर्ट पर फ्लाइट्स बंद होने से अफरातफरी!
20वीं सदी में अफगानिस्तान के आगे नतमस्तक अमेरिका
11 सितंबर 2001 को अफगानिस्तान में तत्कालीन सत्ताधारी तालिबान समर्थक अल कायदा ने यूएस वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर के दो टावरों पर हमला किया और उन्हें ध्वस्त कर दिया। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया और तालिबान को उखाड़ फेंका। बाद में अमेरिका ने लोकतांत्रिक आधार पर वहां सरकार की स्थापना की। पिछले 20 वर्षों में, तालिबान ने 2,448 अमेरिकी सैनिकों, 3,846 ठेकेदारों, 66,000 अफगान पुलिस और 1,144 नाटो सैनिकों को मार डाला है।
जून 2021 से सेना की वापसी
जून 2021 से संयुक्त राज्य अमेरिका ने सैनिकों को वापस बुलाना शुरू कर दिया। तब से तालिबान ने फिर से हमला तेज कर दिया और 16 अगस्त, 2021 को तालिबान ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया। इसी के साथ उसने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया। जिस महाशक्ति अमेरिका ने तालिबान को उखाड़ फेंका,वह अब तालिबान से अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से सुरक्षित वापस लौटने की अनुमति देने का आग्रह कर रहा है।