अवसरवादी भाजपा! अमृत महोत्सव पर भूल गई वीर सावरकर को, बिसर गई क्रांतिकारियों के बलिदान

भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में सत्ता के साथ ही एक विश्वास निर्माण हुआ था कि देश के प्रतीक और सम्मान के साथ भेदभाव पर लगाम लग जाएगा। परंतु, जो घटित हो रहा है वह इसके उलट है।

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भारत की स्वतंत्रता की नींव में हजारों क्रांतिकारियों का बलिदान है। इनमें से कुछ के नाम सामने आए तो असंख्य ने गुमनाम ही प्राणों की आहुति दे दी। इन क्रांतिकारियों में राष्ट्र कर्म की ज्योत को प्रज्वलित करने का कार्य किया स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने। परंतु, राष्ट्र जब स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है तो भारतीय जनता पार्टी को न तो स्वातंत्र्यवीर सावरकर याद हैं और न ही अमर बलिदानी क्रांतिकारी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 के महाराष्ट्र विधान सभा चुनावों के प्रचार में कहते हैं कि, वीर सावरकर के मूल्य राष्ट्र निर्माण का आधार हैं, उन्हीं का संस्कार है जो हमने राष्ट्रवाद को राष्ट्र निर्माण का आधार बनाया है। परंतु, वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब वर्ष 2021 में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने की घोषणा करते हैं तो उनके बैनर से स्वातंत्र्यवीर सावरकर और अमर बलिदानी क्रांतिकारी भुला दिये जाते हैं। क्या ये भाजपा की अवसरवादी सोच है?

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हिंदुत्ववादी दर्शाने के लिए किया उपयोग

भारतीय जनता पार्टी ने कभी भी वीर सावरकर के विचारों को पूर्णरूप से स्वीकार नहीं किया। हम हिंदुत्ववादी हैं यही दर्शाने के लिए उन्होंने वीर सावरकर की प्रतिमा और प्रतिभा का उपयोग किया। भारतीय जनता पार्टी के हाथ केंद्र में स्पष्ट बहुमतवाली सरकार है फिर भी उन्होंने अब तक स्वातंत्र्यवीर सावरकर को भारत रत्न देने की घोषणा नहीं की। उसकी इसी भावना का परिचायक है ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ का बैनर।
मनिषा कायंदे – प्रवक्ता, शिवसेना

वीर सावरकर की अनदेखी
केंद्र सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के लिए एक बैनर बनाया है। इसमें स्वतंत्रता आंदोलन के अगुआ नेताओं की फोटो को स्थान दिया गया है, जिसमें एक ओर सरदार वल्लभ भाई पटेल, सरोजिनी नायडू (जिन्होंने अपने सगे भाई विरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय से संबंध इसलिए समाप्त कर लिये क्योंकि वे क्रांतिकारी थे), लोकमान्य तिलक, डॉ.राजेंद्र प्रसाद हैं तो दूसरी ओर गांधी जी, सुभाषचंद्र बोस, डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर और जवाहरलाल नेहरू हैं। भाजपा के इस बैनर में वह वीर सावरकर नहीं हैं जिनके मूल्यों का उल्लेख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर का नाम न होना कांग्रेस राज में नई बात नहीं थी। उन्होंने 70 साल तक राष्ट्र के अभिमानों की अनदेखी की। अपनी राजनीति के लिए एक परिवार विशेष और कुछ चेहरों तक ही स्वतंत्रता के प्रतीकों को सीमित कर दिया। परंतु, भाजपा के शासन में एक बार फिर वही प्रश्न उठ खड़ा हो गया है कि यह सरकार भाजपा की है या कांग्रेस की?

तो भाजपा के लिए राजनीति तक ही वीर सावरकर सीमित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंदमान कारागृह में जाते हैं, वहां वीर सावरकर की कोठरी में नतमस्तक होते हैं। परंतु, स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के अवसर पर यदि वीर सावरकर याद नहीं रहते तो यही प्रश्न खड़ा होता है कि भाजपा के लिए क्या अवसरवादी राजनीति के लिए ही वीर सावरकर सीमित हैं? जिस परिवार के तीन भाइयों ने स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन अर्पण किया, सजा भुगती उस परिवार को स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर भूलना नहीं चाहिये था।
डॉ.सच्चिदानंद शेवडे – वीर सावरकर के साहित्यों के अभ्यासक

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ भेदभाव

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ सतत भेदभाव होता रहा है। राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए अन्य लोगों की तुलना में उनका योगदान कहीं अधिक था। 1947 में तत्कालीन सत्ताधारियों ने उन्हें स्वतंत्रता दिवस का निमंत्रण नहीं दिया। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ उसी काल से भेदभाव हो रहा है जो अब स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में भी कायम है। यह भारत का दुर्भाग्य है, इसके उलट आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम में मात्र बैनर में ही नहीं बल्कि पूरे साल होनेवाले कार्यक्रमों में वीर सावरकर को स्थान देकर सम्मान करना चाहिये था। भारत माता के उस सपूत के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हुए उन्हें भारत रत्न पुरस्कार दिया जाए।
रमेश शिंदे, प्रवक्ता – हिंद जनजागृति समिति

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