अब हमारे ‘नरवणे’ उनके भी सेना प्रमुख

भारत और नेपाल द्वारा थल सेना प्रमुखों को एक दूसरे की थल सेना का मानद अध्यक्ष पद देने की परंपरा 1950 में शुरू हुई थी जो दोनों सेनाओं के बीच मजबूत संबंध का परिचायक है। दोनों देश एक-दूसरे के आर्मी चीफ को अपने आर्मी चीफ की मानद उपाधि देते हैं।

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राजनीतिक कलाबाजियों में नेपाल की तरफ से भारत के विरुद्ध कई बयानबाजी, देश के नए नक्शे का खेल चलता रहा लेकिन भारत का संयम ही काम आ रहा है। भारत के थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे को नेपाल की सेना का मानद अध्यक्ष पद प्रदान किया गया है।

2017 में जनरल बिपिन रावत को ये सम्मान दिया गया था। जबकि 2019 में नेपाली थल सेना प्रमुख जनरल पूर्ण चंद्र थापा को भारतीय सेना के मानद अध्यक्ष की उपाधि दी गई थी। यह परंपरा 1950 में शुरू हुई थी जो दोनों सेनाओं के बीच मजबूत संबंध का परिचायक है। दोनों देश एक-दूसरे के आर्मी चीफ को अपने आर्मी चीफ की मानद उपाधि देते हैं।

बता दें कि, भारतीय सेना में गोरखा रेजिमेंट है जिसमें नेपाल के नागरिक सेवा देते रहे हैं। इसके अलावा बिहार रेजिमेंट, झारखंड पुलिस में नेपाल के लोगों की भर्ती होती रही है। गोरखा रेजिमेंट के कमांडिंग अधिकारियों को गोरखाली सीखना अनिवार्य होता है। इस रेजिमेंट का हर सैनिक हथियार के रूप में अपने पास खुकरी रखता है। जनरल केएम करियप्पा पहले भारतीय थल सेना प्रमुख थे जिन्हें 1950 में नेपाल के थल सेना अध्यक्ष पद की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

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