आंखें जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। तभी तो कहा जाता है ‘बिन अंखियन सब सून’। लेकिन क्या आपको पता है भारत में आखों वाले लगभग 20 लाख लोग आंखों के बाहरी हिस्से में मौजूद पारदर्शी परत (कॉर्निया) को क्षचि पहुंचने के कारण दृष्टिहीनता के शिकार हो जाते हैं।
डॉक्टरों का मानना है कि ऐसे मामलों में यदि तत्काल आंखों का प्रत्यारोपण किया जाए तो कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के एक चौथाई से ज्यादा मरीजों को आसानी से ठीक किया जा सकता है। शरीर के दूसरे अंगों की तरह, मृत्यु के बाद आँखों के कॉर्निया का भी दान किया जा सकता है।
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“प्रति वर्ष कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के हजारो मामले सामने आते हैं, जिससे इस क्षेत्र में चिकित्सा पर मौजूदा बोझ बढ़ता ही जा रहा है। हर साल कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन की मांग में बढ़ोतरी हो रही है और इस कमी को पूरा करने के लिए आम लोगों को नेत्रदान के बारे में शिक्षित करना जरूरी है।”
डॉ नीता शहा, प्रमुख – क्लीनिकल सर्विसेज, डॉ. अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल मुंबई
नेत्रदान कौन कर सकता है?
नेत्रदान स्त्री-पुरुष और किसी भी आयु के लोग कर सकते हैं। हालांकि, एड्स, हेपेटाइटिस-बी और सी, रेबीज, सेप्टिसीमिया, एक्यूट ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर), टेटनस, हैजा, तथा मेनिनजाइटिस और एन्सेफलाइटिस जैसी संक्रामक बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति के लिए नेत्रदान प्रतिबंधित हो सकता है।
ऐसे कर सकते हैं नेत्रदान
- मृत्यु के बाद 4-6 घंटे के भीतर आँखें निकाली जानी चाहिए
- केवल पंजीकृत चिकित्सक ही निकाल सकता है आंख
- आँखों निकालने की प्रक्रिया से अंतिम संस्कार में देरी नहीं होती
- आँख निकालने की प्रक्रिया में चेहरे को बिगाड़ा नहीं जाता
- दानकर्ता और प्राप्तकर्ता, दोनों की पहचान गोपनीय रखी जाती हैनेत्रदान की अहमियत
नेत्रदान की अहमियत पर चर्चा करते हुए, डॉ. नीता शहा कहती हैं, ” इस बारे में जागरूकता कम होने या नहीं होने के अलावा, सामाजिक या धार्मिक रुकावटों की वजह से देश में नेत्रदान को अभी तक वैसी अहमियत नहीं मिल पाई है, जैसी मिलनी चाहिए थी। इसमें कई तरह की गलतफहमियां और भ्रांतियां फैली हुई हैं, जो इस नेक काम में बाधा डालती हैं। भारत में हर साल सिर्फ 50,000 व्यक्ति नेत्रदान करते हैं जबकि देश में प्रति वर्ष मरने वाले लगभग 1 करोड़ है, जिनमें से मात्र 0.5% से कम लोग ही नेत्रदान करते हैं।