द्रोहकाल का पथिक अब जेल में है… क्या इसी व्यक्तित्व का उसे नुकसान उठाना पड़ रहा है? यह अब बिहार की जनता के मन में घूमने लगा है, आखिर कोरोना काल में जब सब नेता घरों में थे, तब पप्पू यादव परेशान और गरीबों की सहायता कर रहे थे। यही सेवा कोरोना की दूसरी लहर में चलती रही कि, उन्हें कोविड-19 दिशानिर्देशों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इस आरोप से छूटते कि, मधेपुरा पुलिस ने उन्हें 32 वर्ष पुराने एक प्रकरण में गिरफ्तार कर लिया।
पप्पू यादव की छवि कोरोना काल में रॉबिन हुड की बन गई थी। जहां पीड़ा, आवश्यकता वहां पप्पू यादव और उनकी के पार्टी कार्यकर्ता। 1990 मे सिंहेस्वर स्थान से विधान सभा पहुंचने वाले इस नेता की मुहिम है ‘जन अधिकार’। निर्दलीय चुनाव लड़कर वर्ष 1990 में राजनीति में अपनी जगह बनानेवाला यह नेता कभी लालू यादव के उत्थान का सारथी बना और राष्ट्रीय जनता दल से जुड़कर संसद भी पहुंचा।
क्या इसलिए पप्पू यादव जेल में हैं?
मधेपुरा के सिंघेश्वर स्थान विधानसभा की सीट से पहली बार विधायक बनने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने बहुत कम समय में कोसी बेल्ट के जिलों में अपनी छवि स्थापित कर ली थी। उन्होंने पूर्णिया, सहरसा, सुपौल, कटिहार जिलों में अपने समर्थकों का मजबूत नेटवर्क खड़ा कर लिया था।
कार्यकर्ता के रूप में जन-जन तक पप्पू यादव
जन अधिकार पार्टी युवा के महासचिव जेडी यादव कहते हैं, वर्तमान के पप्पू यादव का प्रभाव बिहार की राजनीति में रॉबिन हुड का हैं, वो कोरोना जैसे काल को मानवता, वंचितों के लिए द्रोहकाल मानते हैं और इसे परास्त करने के लिए द्रोहकाल के पथिक बन गए हैं। वे बीमार हैं, इलाज चल रहा है लेकिन विचार वही हैं, जिसे बिहार के हजारो कार्यकर्ता पप्पू यादव बनकर लोगों के बीच पहुंचा रहे हैं।
उनके लिए हैं बाहुबली
उन्मुक्त विचार, जनसेवा की धुन में विचारों का टकराव पप्पू यादव के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। 1991, 1996 और 1999 में अपने दम पर पूर्णिया से सांसद और 2004 और 2014 में राजद के टिकट पर मधेपुरा से संसद पहुंचे। जब आरजेडी से बाहर निकले तो अपनी पार्टी का गठन किया और गरीबों का शोषण करनेवाले अमीरों के लिए बाहुबली बने इस नेता ने जिस जन अधिकार के लिए अपना जीवन समर्पित किया था, उसी नाम से अपने दल का नाम रखा ‘जन अधिकार पार्टी – लोकतांत्रिक’ (जपा)।
संसद निवास में जब लगता था लंगर
पप्पू यादव सांसद थे, उनके दिल्ली निवास के लॉन में आलीशान टेंट सदा तना रहता था। यह आश्चर्य ही था कि, जहां आम सांसदों के बंगलों में वीरानी छाई रहती थी, वहीं पप्पू यादव के बंगले में चहल पहल रहती थी। पूछने पर पता चला कि ये बिहार के ‘पथिक’ हैं जो विभिन्न कार्यों से दिल्ली आए हैं, वे होटलों का खर्च वहन नहीं कर सकते इसलिए सांसद जी के बंगले में बने सर्व सुविधा प्राप्त टेंट में रहते हैं। पप्पू यादव का व्यक्तित्व द्रोहकाल के किसी पथिक से कम नहीं है, जहां गरीबी और लाचारी दिखी, वहीं सांसद अपनी सेवा लेकर पहुंच गए। सांसद निवास में लोगों के नि:शुल्क रहने के ही सुविधा नहीं मिलती थी बल्कि, सबेरे के अल्पाहार से रात के भोजन तक की व्यवस्था भी थी। इसके लिए दिनभर लंगर चलता रहता था।