उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में प्रधानमंत्री और बौद्ध भिक्षु की उपस्थिति में अधिधम्म दिवस कार्यक्रम संपन्न हुआ, इसके साथ ही कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन भी संपन्न हुआ। यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अनुपम भेंट है, इससे भारत का ऐतिहासिक और प्राचीनतम बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध धर्म के केंद्रों से सीधा जुड़ गया है। अधिधम्म दिवस कार्यक्रम में भारत के अलावा श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, दक्षिण कोरिया, नेपाल, भूटान, कंबोडिया से प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु और विभिन्न देशों के राजदूतों ने हिस्सा लिया।
कुशीनगर एक प्राचीन शहर है, जो गौतम बुद्ध का अंतिम विश्राम स्थल है। अधिधम्म दिवस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण मंदिर के महानायक द्वारा वास्काडुवा श्री सुबुद्धि राजविहार मंदिर, श्रीलंका से लाए जा रहे पवित्र बुद्ध अवशेषों की प्रदर्शनी है। इसके लिए श्रीलंका से महानायक के नेतृत्व में 12 लोगों का पवित्र अवशेष दल समेत 123 नायकों, अनुनायको और श्रीलंका के मंत्री का दल आया हुआ है।
कुशीनगर का धार्मिक महत्व
यहां बुद्ध ने अपनी मृत्यु के बाद महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। यह प्राचीन काल से ही बौद्धों के लिए महत्वपूर्ण एक तीर्थस्थल रहा है। कुशीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन विश्व में बौद्धों के पवित्रस्थलों को जोड़ने वाली तीर्थयात्रा के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
India is the centre of the faith of Buddhist society around the world. The facility of Kushinagar International Airport, launched today as a tribute to their devotion: PM @narendramodi pic.twitter.com/QSoou160js
— PIB India (@PIB_India) October 20, 2021
ऐतिहासिक महत्व
वर्ष 1898 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पुरातत्वविदों ने पिपराहवा, सिद्धार्थनगर जिला (उत्तर प्रदेश) में ब्रिटिश जमींदार विलियम क्लैक्सटन पेप्पे की जायदाद में स्थित एक बड़े टीले की खुदाई की थी। यह स्थल कुशीनगर से 160 किलोमीटर दूर है। इस खुदाई में उन्हें एक बड़ा पत्थर का बक्सा मिला था जिसके अंदर कुछ ताबूत थे और एक ताबूत पर ये शब्द अंकित थे।
‘इयांगसलीलानिधाने बुद्धसभगवथेसकियानसुकिथिबहथानांभागिनिकाथनसासुनादलता’
श्रीलंका के वास्काडुवा मंदिर के सुभूति महानायके थेरो इस कार्य में पुरातत्व दल की मदद कर रहे थे। पेप्पे ने इस पाठ का अनुवाद किया, जिसका अर्थ है
“बुद्ध के अवशेषों को जमा करने का यह नेक काम शाक्य के भाइयों, बहनों और बच्चों द्वारा किया गया था
इस प्रकार इन अवशेषों को वास्तविक अवशेष (हड्डी के टुकड़े, राख, बुद्ध के गहनों के टुकड़े) के रूप में स्वीकार किया जाता है। इस स्तूप से प्राप्त हुए बुद्ध अवशेषों का एक हिस्सा थाईलैंड के राजा के पास और दूसरा हिस्सा बर्मा के राजा को भेजा गया था। डब्ल्यू.सी. पेप्पे ने सुभूति महानायके थेरो को कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में इन अवशेषों का एक और हिस्सा सौंप दिया था। उसी अवशेषों का एक हिस्सा तीन छोटे, कमलों में निहित हैं, जो क्रिस्टल बॉल में घिरा है। इन्हें 30 गुणा 26.5 सेंटीमीटर लकड़ी के स्टैंड पर फिक्स किया गया है, जिसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने के लिए कुशीनगर लाया गया था।
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