किसान यूनियन के नेता किसानों के हित और उसकी लाचारी की बात कर रहे हैं, परंतु ये सब नेता अपने-अपने क्षेत्रों के किसी छत्रप से कम नहीं हैं। इसके कारण प्रत्येक की अपनी पृष्ठभूमि है और अपने साम्राज्य की लालसा भी है। पिछले 11 महीनों में जैसे-जैसे आंदोलन की अलख मंद हो रही है, वैसे-वैसे निजी महत्वाकांक्षाएं प्रबल हो रही हैं।
डगमगाए कदम
- बात करते हैं गुरनाम सिंह चढूनी की, तो वे अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति की इच्छा पहले ही प्रकट कर चुके हैं। इसके लिए अगस्त में पंजाब में गढशंकर में किसान यूनियन के नेताओं की बैठक में 117 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर चुके हैं। वर्तमान समय में वे अपनी इसी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पूर्ण करने के लिए पंजाब विधानसभा चुनावों में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं।
- योगेंद्र यादव को संयुक्त किसान मोर्चा की वाणी माना जाता रहा है। परंतु, लखीमपुर खीरी में मृतक भाजपा कार्यकर्ताओं के घर जाने पर संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा उन्हें भी निलंबन सहना पड़ा है। उन्हें एक महीने के लिए निलंबित कर दिया है। वे 12 अक्टूबर 2021 को मृतक भाजपा कार्यकर्ता के घर गए थे।
- रुलदू सिंह मनसा ने अपने भाषण में खालिस्तानियों का तीव्र विरोध किया था। इसमें उन्होंने गुरपतसिंह पन्नू को कुत्ता बताया था। संयुक्त किसान यूनियन को यह बात रास नहीं आई और उसने रुलदू को 15 दिनों के लिए निलंबित कर दिया।
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निलंबन पर नाराजी
किसान नेताओं पर बार-बार हो रही निलंबन की कार्रवाई से किसान संगठनों में मतभेद और अनुशासनहीनता चरम पर पहुंच गई है। सूत्रों के मुताबिक राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन पर पूरी पकड़ बना ली है और ऐसे में अब अन्य किसान यूनियन के नेता आंदोलन से पीछे हटने की कोशिश में लगे हैं। यही नहीं, कई किसान यूनियन के नेता तो अपनी राजनीतिक अभिलाषाओं की पूर्ति भी इसी चुनाव में कर लेना चाहते हैं।
एक दूसरे पर आरोप
संयुक्त किसान मोर्चे में मतभेद को मानते हुए पंजाब के कीर्ति किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष राजिन्दर सिंह का कहना है कि, मोर्चा कई संगठनों से मिलकर बना है, इसलिए मतभेद तो पहले से ही रहे हैं। गुरमान सिंह चढूनी मिशन पंजाब की बात कर रहे हैं। जबकि योगेन्द्र यादव से हरियाणा के किसान संगठन नाराज हैं।