छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन चरित्र को जन-जन तक पहुंचानेवाले शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे अब नहीं रहे। आयु की शतक पूर्ति करके उन्होंने इस जग से विदाई ली। यह नई पीढ़ी के लिए, शिव चरित्र के इतिहासकारों और भारत भूमि के समग्र इतिहास लेखक वर्ग के लिए बड़ी क्षति है।
मृत्युलोक में काल सबका निश्चित है, बाबासाहेब पुरंदरे का भी निश्चित था, रविवार को एक छोटी सी दुर्घटना हुई और भारत भूमि के एक महान इतिहासकार की जीवन ज्योति अनंत में विलीन हो गई। आयु का शतकोत्सव मना रहे बाबासाहेब पुरंदरे शिवचरित्र को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रयत्नशील रहे, इसके लिए उन्हें ‘शाहीर’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इस अनुपम कार्य के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
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वीर सावरकर की वो बात और शिवचरित्र का उदय
शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे से दो महीने पहले 9 सितंबर, 2021 को वीर सावरकर के पौत्र और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर और कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे ने भेंट की थी। इस भेंट में बाबासाहेब पुरंदरे के हाथों ‘सावरकर विस्मृतिचे पडसाद’ नामक मराठी ग्रंथ का विमोचन संपन्न हुआ था। तब बाबासाहेब पुरंदरे ने क्रांति शिरोमणि वीर सावरकर से उनकी भेंट की एक घटना का उल्लेख किया था। उन्होंने बताया कि, एक बार केसरी वाडा में स्वातंत्र्यवीर सावरकर आए हुए थे। 12-13 वर्ष की आयु रही होगी, सावरकर कैसे भाषण देते हैं, इसकी नकल बाबा ने वीर सावरकर के समक्ष किया। वीर सावरकर ने शाबाशी दी और अपने पास बुलाया। वे बोले, तुमने अच्छी नकल की, परंतु तू जीवन भर ऐसे ही नकल करते रहेगा क्या? अपना भी तो कुछ कर। यह शब्द बाबा के मन में बैठ गया और तभी से उन्होंने नकल करना छोड़ दिया। अपने पास कथन शैली है, इसका भान बाबा को हुआ और वहीं से शिव चरित्र का जन्म हुआ।
14 साल की आयु से शिवचरित्र का प्रसार-प्रचार
शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे 14 साल की आयु से ही इतिहास और शिवचरित्र में अपने आपको लीन कर लिया। उनके कड़े परिश्रम और तपस्या का परिणाम है कि उन्होंने शिव चरित्र पर 12 हजार से अधिक व्याख्यान दिये। बाबासाहेब के पास एक तीक्ष्ण बुद्धि, विश्लेषणात्मक क्षमता, प्रेरक इतिहास लिखने के लिए असाधारण लेखन कौशल और अपने कथा शैली से लोगों को खींचने की अद्भुत क्षमता थी।
पुणे ही बनी कर्मभूमि
बाबासाहेब पुरंदरे पुणे में ‘भारत इतिहास शोधक मंडल’ में काम करना शुरू कर दिया था। यहीं उनकी भेंट इतिहास संशोधक ग.ह खरे से हुई, जो उनके गुरु बने और उनके मार्गदर्शन में इतिहास शोधकर्ता के रूप में अपनी यात्रा शुरू की। पुणे विश्वविद्यालय के अंतर्गत ‘मराठा इतिहास की शकावली वर्ष 1740 से 1761’ की शोध परियोजना में उन्होंने एक शोधकर्ता के रूप में हिस्सा लिया। यह शोध ‘भारत इतिहास शोधक मंडल’ के द्वारा की गई थी। वर्ष 2015 तक छत्रपति शिवाजी महाराज पर उन्होंने 12,000 से अधिक व्याख्यान दिए जो रिकॉर्ड है।
जाणता राजा का मंचन
शिवशाहीर ने फुलवंती और जाणता राजा नामक नाटकों का लेखन और निर्देशन भी किया। 27 वर्षों में इस महान नाटक के 1250 से अधिक मंचन हो चुके हैं। पहला मंचन 14 अप्रैल 1984 को हुआ था। बाबासाहेब ने इन मंचन से मिलनेवाली आय से विभिन्न संगठनों को लाखो रुपये का दान दिया। इस नाटक का हिंदी-अंग्रेजी सहित 5 अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया है। ‘जाणता राजा’ में 150 कलाकार और हाथी-घोड़ों का उपयोग होता है।
जीवन परिचय
बाबासाहेब पुरंदरे का मूल नाम शिवशाहीर बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे था। उनका जन्म 29 जुलाई, 1922 को पुणे के सासवड में हुआ था। उनकी पत्नी का नाम निर्मला था, उनके 3 बच्चे हैं- माधुरी पुरंदरे, प्रसाद पुरंदरे और अमृत पुरंदरे। बाबासाहेब की पत्नी निर्मला पुरंदरे अपने शैक्षिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध थीं और उन्हें ‘पुण्य भूषण’ पुरस्कार मिला। बाबासाहेब की बेटी माधुरी पुरंदरे गायिका और लेखिका हैं।