29 नवंबर से शुरू हो रहा है संसद का शीत सत्र, बिखरे विपक्ष के पास बचे हैं मात्र ये मुद्दे

इस बार विपक्ष में एकजुटता का अभाव साफ दिख रहा है। ममता बनर्जी की पार्टी ने जहां सत्र में भाग न लेने की घोषणा कर दी है, वहीं कांग्रेस के साथ भी उसकी तनातनी बढ़ती दिख रही है।

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मोदी सरकार तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द कर संसद के शीत सत्र के पहले ही दिन किसानों से किए अपने अपने वादे को पूरा करेगी। इसे सत्र के पहले ही दिन की कार्यसूची में शामिल किया गया है। इसके बाद पेगासस जासूसी कांड की जांच कराने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद विपक्ष के बाद कोई बड़ा मुद्दा नहीं बचा है। इसलिए कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियां इस सत्र में जनता से जुड़े मुद्दों पर विशेष रुप से सरकार को घेरने की कोशिश करेंगी।

बता दें कि तीनों कृषि कानूनों की वापसी पर केंद्रीय कैबिनेट ने 24 नवंबर को ही मुहर लगा दी थी। नियम और परंपरा के अनुसार कानूनों की वापसी के लिए विधेयक सबसे पहले उसी सदन में पेश किया जाता है, जिसमें पारित करते समय पेश किया गया था। पिछले साल इसे लोकसभा और बाद में राज्यसभा में भारी हंगामे के बीच पारित किया गया था। शीत सत्र में विपक्ष के लिए सरकार को घेरने का यही सबसे बड़ा मुद्दा था, लेकिन सरकार के इसे रद्द करने के निर्णय से यह मुद्दा उसके हाथ से चला गया है।

विपक्ष के पास बचे हैं मात्र ये मुद्दे
अब सरकार के पास महंगाई, कोरोना पीड़ितों की मदद, टीकाकरण, अर्थव्यवस्था की चुनौती और बेरोजगारी जैसे मुद्दे ही बचे हैं। इसके साथ ही चीन के लगातार बढ़ रहे कथित अतिक्रमण जैसे मुद्दों पर भी बहस कराने की मांग विपक्ष कर सकता है।

विपक्ष उठा सकता है चीन की चालबाजी का मुद्दा
बता दें कि कांग्रेस नेता अन्य मुद्दों के साथ ही पूर्वी लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के बाद भूटान के सीमावर्ती इलाके में चीन की चालबाजी पर सरकार की लगाम न कसने की कथित कमजोरी का मसला उठाते रहे हैं। सत्र के दौरान कांग्रेस इन मुद्दों पर बहस कराने की मांग कर सकती है।

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बिखरा विपक्ष
इसके साथ ही इस बार विपक्ष में एकजुटता का अभाव भी साफ दिख रहा है। ममता बनर्जी की पार्टी ने जहां कांग्रेस के नेतृत्व में हुई बैठक में भाग न लेने की घोषणा कर दी है, वहीं कांग्रेस के साथ भी उसकी तनातनी बढ़ती दिख रही है। एक तरफ जहां उन्होंने कांग्रेस नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराने का अभियान चला रखा है, वहीं वे खुद को 2024 में विपक्ष की ओर से अपनी दावेदारी पेश करने की तैयारियों में जुटी हैं। इस कारण संसद के शीत सत्र में विपक्ष कमजोर और बिखरा हुआ नजर आ रहा है।

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