केंद्र सरकार एक तरफ सीएए के जरिए दूसरे पड़ोसी देशों के नागरिकों को भारतीय नागरिकता देने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ पिछले पांच सालों में 6 लाख से ज्यादा भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में यह जानकारी दी है। लिखित उत्तर में बताया गया है कि इन भारतीयों ने दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार करने के लिए अपनी भारतीय नागरिकता का त्याग किया है।
विदेश में बसने के लिए नागरिकता का परित्याग
- केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के लिखित जवाब के अनुसार 2017 में 1 लाख 33 हजार भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी
- 2018 में इनकी संख्या 1 लाख 34 हजार हो गई।
- 2019 में यह बढ़कर 1 लाख 44 हजार हो गई।
- 2020 में, कोरोना संक्रमण की पृष्ठभूमि और अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर प्रतिबंधों के साथ-साथ विभिन्न देशों में लॉकडाउन के कारण यह संख्या गिरकर 85,248 रह गई।
- 2021 में प्रतिबंध हटने के बाद 30 सितंबर तक भारतीय नागरिकता त्यागने वाले नागरिकों की संख्या 1 लाख 11 हजार है।
- आंकड़ों के मुताबिक अब तक कुल 1 करोड़ 33 लाख 83 हजार 718 भारतीय नागरिक विदेशी बन चुके हैं।
भारतीय नागरिकता के लिए अधिकांश आवेदन पाकिस्तान से हैं
एक ओर, नागरिकता त्यागने वाले भारतीयों की संख्या लाखों में है तो वहीं भारतीय नागरिकता स्वीकार करने वालों की संख्या भी राय द्वारा दी गई है। 2016 से 2020 तक के पांच वर्षों में कुल 4,177 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है। भारतीय नागरिकता के लिए कुल 10,645 लोगों ने आवेदन किया था। इसके लिए सबसे अधिक आवेदन पाकिस्तान (7782), उसके बाद अफगानिस्तान (795), यूएसए (227), श्रीलंका (205), बांग्लादेश (184), नेपाल (167) और केन्या (185) से आए हैं।
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इन समुदाय के लोग नागरिकता के लिए कर सकते हैं आवेदन
सीएए यानी नागरिकता संशोधन अधिनियम के अनुसार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुल देशों के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।