चीनी ‘हवाबाजी’ के माइक्रोवेव हथियार हैं क्या?

चीनी सैनिकों द्वारा माइक्रवेव हथियारों के उपयोग करने दावे को भारतीय सेना ने फर्जी करार दिया है। दि ऑस्ट्रेलियन और द टाइम्स नमाक समाचार माध्यमों में ये छपा था कि लद्दाख में भारतीय सेना के नियंत्रणवाले वाले क्षेत्र को चीन ने माक्रोवेव में बदल दिया।

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लद्दाख में चीनी चालबाजियों का नया शिगुफा सामने आया है। वहां के एक प्रोफेसर ने दावा किया है कि चीनी सेना ने भारतीय सैन्य कब्जेवाली चोटियों को माइक्रोवेव हथियारों के उपयोग से मुक्त करा लिया है। उसके इस दावे पर चीनीं सैनिकों के रोते हुए चेहरे सामने आ गए जो सैनिकों मे से ही किसी ने रिकॉर्ड कर जारी किये गए थे। हालांकि इस पर भारतीय सेना की ओर से भी बयान जारी किया गया है। जिससे लगता है कि चीनी रोतड़े सैनिकों की ये नई ‘हवाबाजी’ (डींग) है।

चीनी सैनिकों द्वारा माइक्रवेव हथियारों के उपयोग करने दावे को भारतीय सेना ने फर्जी करार दिया है। दि ऑस्ट्रेलियन और द टाइम्स नमाक समाचार माध्यमों में ये छपा था कि लद्दाख में भारतीय सेना के नियंत्रणवाले वाले क्षेत्र को चीन ने माक्रोवेव में बदल दिया। जिसका परिणाम ये हुआ कि भारतीय सैनिक वहां का नियंत्रण छोड़ने को मजबूर हो गए। भारतीय सेना ने इस पर वास्तविक जानकारी दी है कि ये पूरी तरह से फर्जी दावा है। जानकारों के अनुसार भी ये प्रश्न खड़ा किया गया है कि चीन इतना सक्षम होता तो ठंड के पहले झोंके में उसके सैनिक अस्पताल में न पहुंचते। इसके अलावा चीनी विदेशी मीडिया को भी प्रभावित करता रहा है। वो इसके लिए खर्च करके अपने बातों को किसी न किसी प्रकार से प्रसारित करवाता है।

क्या हैं माइक्रोवेव हथियार?

माइक्रोवेव एनर्जी हथियार इलेक्ट्रो मेग्नेटिक रेडिएशन उत्पन्न करने वाले हथियार हैं। इसे डायरेक्ट एनर्जी वेपन भी कहा जाता है। इन हथियारों से माइक्रोवेव किरणें छोड़कर लक्ष्यित क्षेत्र में प्रबल ऊर्जा उत्सर्जित की जाती है। जिससे मानव असहनीय ऊर्जा का अनुभव करते हैं। इसके अलावा इसके क्षेत्र में आनेवाले इलेक्ट्रॉनिक सामान, रेडियो सिस्टम, संचार साधन नष्ट हो जाते हैं। इस स्थिति में अपने हथियार, साजो सामान का उपयोग न कर पाने से दुश्मन कमजोर हो जाता है।ऐसे हथियारों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें कम घातक माना जाता है। इनसे गंभीर चोट लगने या मौत का खतरा नहीं होता।

‘काली’ देगी मुंहतोड़ उत्तर

भारत का रक्षा अनुसंधान विकास संस्थान (डीआरडीओ) भी विश्व में किसी से पीछे नहीं है। भारत में ‘काली’ नाम की एक परियोजना पर कार्य चल रहा है। इसे किलो एंपीयर लीनियर एंजेक्टर (काली) भी कहते हैं। जिससे 100 किलोवाट पावर उत्सर्जित होगा। इससे दुश्मन की छोटी मिसाइल, फाइटर जेट या ड्रोन को आकाश में ही गुप्त रूप से नष्ट किया जा सकेगा। रक्षा क्षेत्र के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 2020 में लाल किले पर पीएम के भाषण के दौरान एक एंटी ड्रोन सिस्टम तैनात किया था जिसकी रेंज 2 किलोमीटर थी।

काली की कार्य प्रणाली के बारे में बात करें तो इससे किसी भी मिसाइल को धराशाई किया जा सकता है। मिसाइल प्रक्षेपण की जानकारी मिलते ही काली पावरफुल सापेक्ष एलेक्ट्रॉन बीम्स (आरईबी) को उत्सर्जित करेगी जिससे मिसाइल का इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम नष्ट हो जाएगा।

लंबे से समय से रीसर्च

अगस्त 2019 में एयर चीफ मार्शल एलएम कतरे मेमोरियल के 12वें वार्षिक व्याख्यान में डीआरडीओ के मुखिया डॉ. जी सतीश रेड्डी ने कहा था कि, डायरेक्ट एनर्जी वेपन्स आज के युग में बहुत आवश्यक है। देश में हम भी कई प्रयोग कर रहे हैं। इस क्षेत्र में हम पिछले 3 से 4 वर्षों से कार्य कर रहे हैं। जिससे 10 से 20 किलोवाट के हथियार बनाए जा सकें।

जानकारों के अनुसार अगस्त 2017 में डीआरडीओ ने 1 किलोवाट के लेजर आधारित हथियार का प्रयोग भी किया था। यह प्रयोग कर्नाटक के चित्रदुर्ग में किया गया था। लेजर हथियारों के विकास के संदर्भ में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए 2018 में संसद में सूचित किया गया था कि डीआरडीओ ने एक गाड़ियों पर लगनेवाले हाई पावर लेजर निर्देशित एनर्जी सिस्टम को विकसित किया है। जिससे ड्रोन पर निशाना साधा जा सकता है।

चीन में भी प्रयोग

पापुलर साइंस के अनुसार चीन 2017 से माइक्रोवेव हथियारों पर काम कर रहा है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल कर मिसाइलों या दूसरी मशीनरी को बेकार कर सकते हैं। इस तरह के हथियार 300 और 3,00,000 मेगाहर्ट्ज के बीच एनर्जी पल्स के साथ किसी निशाने पर हमला करेंगे। इतनी एनर्जी दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को ओवरलोड कर देती है, जिससे वे बंद हो जाते हैं।

 

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