देश के विभिन्न किसान संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून के विरोध में 26 नवंबर से दिल्ली में अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि अगर दिल्ली जाने से उन्हों रोका गया तो वे दिल्ली जानेवाली सड़कों को जाम कर देंगे। प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए चंडीगढ़ में 500 किसान यूनियनों की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया गया है।
खास बातें
- मांग पूरी नहीं होने तक संसद के बाहर प्रदर्शन करने का ऐलान
- तीन-चार महीने तक दिल्ली में रुकने का इंतजाम
- पंजाब के किसान 11 ट्रैक्टर लेकर पहुंचेंगे दिल्ली
- केंद्र सरकार अगर बातचीत के लिए बुलाएगी तो किसान नेता होंगे शामिल
ये है मांग
नए कृषि कानूनों को रद्द करना
इन राज्यों के किसान होंगे शामिल
आंदोलन में तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के साथ ही पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसान मुख्य रुप से शामि होंगे।
कृषि बिल का विरोध क्यों?
- न्यूनतम समर्थन मूल्य( एमएसपी) को समाप्त किये जाने का डर
- मंडियां खत्म होने का खतरा
- मंडियों के अंदर टैक्स लगाने की संभावना, बाहर नहीं लगेगा टैक्स
- व्यापारी टैक्स बचाने के लिए मंडी के बाहर से करेंगे खरीददारी
- नये बिलों में एक बिल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़ा है। विवाद होने पर किसानों को कोर्ट जाने का अधिकार खोने का डर
- किसानों को सरकार पर भरोसा नहीं
क्या है कृषि कानून?
1) कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020
राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स लगाने से रोकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है। सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी, जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे। सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं। इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। इसके जरिये सरकार एक देश, एक बाजार की बात कर रही है।
किसान अपना उत्पाद खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकेंगे। इस बारे में केंद्रीय कृषमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि इससे किसान अपनी उपज की कीमत तय कर सकेंगे। वह जहां चाहेंगे अपनी उपज को बेच सकेंगे जिसकी मदद से किसान के अधिकारों में इजाफा होगा और बाजार में प्रतियोगिता बढ़ेगी।
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2) आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन
पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गई थी। अब नए विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए लाया गया है।
इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी। इस पर सरकार का मानना है कि अब देश में कृषि उत्पादों को लक्ष्य से कहीं ज्यादा उत्पादित किया जा रहा है। किसानों को कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, खाद्य प्रसंस्करण और निवेश की कमी के कारण बेहतर मूल्य नहीं मिल पाता है।
3) किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण)
समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश – यह कदम फसल की बुवाई से पहले किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा प्रदान करता है। इस अध्यादेश में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की बात है। सरकार की मानें तो इससे किसान का जोखिम कम होगा। दूसरे, खरीदार ढूंढने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा। सरकार का तर्क है कि यह अध्यादेश किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि इससे बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों पर नहीं रहेगा और किसानों की आय में सुधार होगी। सरकार का यह भी कहना है कि इस अध्यादेश से किसानों की उपज दुनियाभर के बाजारों तक पहुंचेगी। कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ेगा।