देश में लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के प्रावधान वाला विधेयक शीतकालीन सत्र 2021 में पारित नहीं हो पाया। 21 दिसंबर को भारी हंगामे के बीच इसे लोकसभा में पेश किया गया। महिला व बाल विकास केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक को पेश तो किया लेकिन विपक्ष के हंगामे और विरोध के कारण इस विधेयक को उन्होंने सभापति से संसद के स्थायी समिति के पास विस्तृत चर्चा के लिए भेजने का अनुरोध किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह संशोधन विधेयक को मंजूरी दी थी।
देश में अलग-अलग धर्मों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र अलग-अलग है और यह संशोधन छह धार्मिक कानूनों में बदलाव करेगा और लड़कियों के लिए शादी की कानूनी उम्र लड़कों की तरह 21 साल हो जाएगी।
समान हो जाएगी शादी की कानूनी उम्र
इस विधेयक के द्वारा सरकार भारतीय ईसाई, पारसी, मुस्लिम, हिंदू विवाह और तलाक कानूनों के साथ-साथ विशेष विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम में संशोधन करना चाह रही थी। इरानी ने कहा कि संशोधन सभी विवाह कानूनों में बदलाव लाएगा और देश में शादी की कानूनी उम्र में समानता आएगा।
विधेयक को स्थायी समिति में भेजने का अर्थ
- संसद की स्थायी समिति में समाज के तमाम स्टेक होल्डर्स के साथ विचार किया जाएगा।
- समिति सबकी राय जानने के बाद सिफारिश करेगी। इस समिति में सभी दलों के सदस्य होते हैं।
- सरकार सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
- अगर सरकार को लगता है कि सिफारिश में से कोई बात उसे मानना चाहिए तो वह उसे बिल में शामिल कर दोबारा कैबिनेट की मंजूरी दिलाकर सदन में पेश करेगी।
- सदन में विपक्ष को विरोध का अधिकार रहेगा।
सरकार को नरम रुख अपनाने के कारण
-चर्चा है कि पांच राज्यों में चुनावों को देखते हुए इस विधेयक को समिति को भेजना पड़ा।
-विपक्ष के साथ ही सरकार के भीतर भी एक राय नहीं।
-मुसलमानों के साथ ही कुछ हिंदू तबकों में भी हो रहा था विरोध
-पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के परिणाम आने के बाद केंद्र इसे लेकर आगे बढ़ सकता है।
सरकार का तर्क
इस बारे में केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने कहा था कि 1978 में शारदा एक्ट में बदलाव करते हुए महिलाओं की शादी की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी। उन्होंने कहा कि अब जब भारत तरक्की की राह पर चल पड़ा है तो महिलाओं के लिए भी ऊंची शिक्षा हासिल करने और करिअर बनाने के अवसर बढ़ गए हैं।
क्या है वर्तमान कानून?
केंद्र सरकार बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 संशोधन कानून लाने वाली है। इसके साथ ही स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ तथा हिंदू मैरिज एक्ट 1955 में भी संशोधन किया जाएगा।
इन एक्ट में होगा संशोधन
इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 पारसी मौरिज एंड डायवोर्स एक्ट 1936 स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955, सभी के लिए लड़के की तरह लड़की की भी उम्र 21 साल करने का प्रावधान है। इसमें धर्म के हिसाब से कोई छूट नहीं दी गई है। फिलहाल बाल विवाह अधिनियम 2006 लागू है। इसके अनुसार 21 और 18 साल से पहले की शादी बाल विवाह माना जाएगी।
देश में शादी की स्थिति
दकियानूसी सोच, कठमुल्लों के दबाव और मुस्लिम लॉ( शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 की वजह से समाज मे शादी की स्थिति में समानता नहीं है। यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार भारत में 27 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल और 7 प्रतिशत की 15 साल की उम्र से कम में हो जाती है। इसमें बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय का है।
क्या बाल विवाह निषेध कानून 2006 इस्लाम में भी लागू होता है?
-इस बारे में कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है।
-दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2021 में एक 15 साल की लड़की की अपनी मर्जी से शादी को वैध मानते हुए फैसला सुनाया था। उसने अपने फैसले में कहा था कि इस्लामिक कानून के अनुसार मासिक धर्म शुरू होने के बाद लड़कियां अपनी इच्छा से शादी कर सकती हैं।
-गुजरात उच्च न्यायालय ने 2015 में फैसला दिया था कि बाल विवाह निषेध कानून 2006 के दायरे में मुसलमान भी आते हैं।
-अक्टूबर 2017 में सर्वोच्च न्यायालय के जज जस्टिस एबी लोकुर और दीपक गुप्ता वाली पीठ ने मुसलमानों के लिए अलग से विवाह कानून को पीसीएमए के साथ मजाक बताया था।
-सितंबर 2018 में पंजाब- हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा था कि समुदाय विशेष पर यह कानून लागू नहीं होगा। न्यायालय ने कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ स्पेशल एक्ट है, जबकि पीसीएमए एक सामान्य एक्ट है।
ईसाई विवाह अधिनियम 1872
1872 का भारतीय ईसाई विवाह अधिनिययम कानूनी विवाह को विनियमित करने वाली भारत की संसद का एक अधिनियम है। 18 जुलाई 1872 को यह अधिनियम लागू किया गया था। कोचिन, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों को छोड़कर पूरे देश में यह अधिनियम लागू है। अन्य भारतीय विवाह की तरह ही ईसाई धर्म में भी लड़के की शादी की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल है।