स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष पद पर महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रवीण दीक्षित की विजय हुई है। उन्हें इस पद के लिए स्मारक के सदस्यों का पूरा समर्थन मिला और उन्होंनें प्रतिद्वंदी उम्मीदवार को पराजित कर दिया।
यह चुनाव रोचक पहुत रोचक था, एक ओर प्रचार पुरुष कांग्रेस निष्ठ दीपक तिलक थे, तो दूसरी ओर स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के सदस्यों का समर्थन प्राप्त आईपीएस अधिकारी प्रवीण दीक्षित थे। यह चुनाव कांग्रेस निष्ठा और वीर सावरकर के निष्ठावानों के बीच प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था, जिसका परिणाम यह रहा कि, कुल 139 मतों में से 137 मत प्रवीण दीक्षित को मिले और मात्र 2 मतों पर सिमट गए दीपक तिलक।
मैं सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूं, उन्होंने इस पद के लिए मेरे निवेदन को स्वीकार किया और मुझे मत देकर अवसर प्रदान किया। मेरा सभी से अनुरोध है कि, आपके इस सहयोग के साथ आपके सुझाव भी सदा स्वागतेय होंगे। आप स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक में प्रत्यक्ष रूप से, चिट्ठी के माध्यम से या ईमेल के माध्यम से मुझसे अपने सुझाव साझा कर सकते हैं।
प्रवीण दीक्षित – नवनियुक्त अध्यक्ष, स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक
नए अध्यक्ष का कार्यवृत्तांत
प्रवीण दीक्षित भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1977 बैच के अधिकारी हैं। उन्होंने 39 वर्ष तक पुलिस अधिकारी के रूप में राष्ट्र सेवा की। इस बीच उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस, विदेश में सेवा, राज्य आरक्षी दल (एसआरपी) के प्रमुख रहे। अनुशासन प्रिय, गंभीर स्वभाव और मृदु भाषी अधिकारी के रूप प्रवीण दीक्षित का कार्य सभी स्तर पर सराहा गया। उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए राष्ट्रपति सम्मान से उन्हें विभूषित किया गया।
महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक पद पर सेवा देने के बाद उन्हें सेवा निवृत्ति मिली। इसके उपरांत वे महाराष्ट्र एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के उपाध्यक्ष भी रहे।
प्रशासनिक सेवाओं से निवृत्ति के पश्चात प्रवीण दीक्षित ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के कार्यों को अपने समर्थन और सेवा से आगे ले जाने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और उसमें सफलता प्राप्त की।
प्रचार तक ही सिमटे दीपक
स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष पद के चुनाव में आईपीएस अधिकारी और सावरकर निष्ठ प्रवीण दीक्षित के समक्ष कांग्रेस निष्ठ दीपक तिलक उम्मीदवार थे। लोकमान्य तिलक के पौत्र के रूप में उनकी छवि है, लेकिन पुणे के केसरी वर्तमान पत्र के कार्यालय और तिलक विश्वविद्यालय की दुर्दशा सर्व विदित है। इस चुनाव में उनकी भूमिका को लेकर जब प्रश्न पूछे गए, तो उन्होंने बात करने से नकार दिया, जबकि अपनी उम्मीदवारी की घोषणाएं वे विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से छपवाते रहे। अति तो तब हो गई, जब मतदान के लिए वे स्वत: भी नहीं आए। यानी दूसरी बार है जब, दीपक तिलक उम्मीदवार होने के बाद भी नहीं आए।