महापौर या पार्टी प्रवक्ता?

मुंबई का महापौर होना देश के कई राज्यों के मुख्यमंत्री होने के समान है। इस पर विराजित व्यक्ति यद्यपि शासित दल का होता है लेकिन उस पद को ग्रहण करने के बाद वह सबका प्रतिनिधि हो जाता है। इस गरिमा को अब तक हुए सभी महापौरों ने बखूबी निभाया।

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मुंबई की वर्तमान महापौर को विराजित हुए एक वर्ष हो गया है। उनके कार्यकाल का अधकांश काल कोरोना महामारी के साए में बीता है। इस काल में महापौर ने अपनी सक्षम कार्यशैली का परिचय देने के लिए कड़ा परिश्रम किया लेकिन, इस बात को जनता स्वीकार करने को तैयार नहीं है। इसका कारण है कि महापौर को अधिकांश समय पार्टी का पक्ष पेश करते देखा जा सकता है। ऐसे में जनता इस संभ्रम में है कि महापौर पद पर विराजित व्यक्ति पार्टी प्रवक्ता है क्या?

मुंबई का महापौर होना देश के कई राज्यों के मुख्यमंत्री होने के समान है। इस पर विराजित व्यक्ति यद्यपि शासित दल का होता है लेकिन उस पद को ग्रहण करने के बाद वह सबका प्रतिनिधि हो जाता है। इस गरिमा को अब तक हुए सभी महापौरों ने बखूबी निभाया। लेकिन वर्तमान महापौर किशोरी पेडणेकर इनमें से कुछ अलग हैं। उनकी कार्यशैली यद्यपि पूर्व के महापौरों की अपेक्षा अधिक सक्रिय है। लेकिन, इस पद के साथ कुछ गरिमा जुड़ी होती है जो अब टूटती नजर आ रही है।

कार्यशैली में काम आया अनुभव

महापौर किशोरी पेडणेकर कोरोना काल के दौरान अधिक सक्रिय रहकर प्रभावी भी रहीं। उन्होंने अधिकांश सरकारी अस्पतालों में जाकर निरीक्षण किया। स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ बैठकें करके उनकी राय, दिक्कतें जानीं उसके अनुसार प्रशासन में बदलाव के आदेश दिये। इसमें महापौर का अपना अनुभव काम आया। महापौर खुद भी परिचारिका रह चुकी हैं। उनके इस अनुभव का लाभ महामारी काल में लोगों को हुआ है इसमें दो राय नहीं है। महापौर की यह सक्रियता सेवा में दिखी तो वहां पर भी दिख रही है जहां से अब तक के महापौरों ने दूरी बनाए रखी थी।

भूल गईं प्रथा

शिवसेनाप्रमुख कहते थे महापौर बनकर व्यक्ति को पार्टी का विचार नहीं करना चाहिए बल्कि, शहर के विकास कार्यों की तरफ ध्यान देना चाहिेए। लेकिन यह शिक्षा अब खंडित प्रतीत हो रही है। अब तक महापौर का मीडिया के समक्ष पेश होना किसी घटना या विकास कार्य की जानकारी देने तक सीमित रहा है। लेकिन किशोरी पेडणेकर महापौर होने साथ-साथ पार्टी की प्रवक्ता के रूप में भी नजर आती हैं। टीवी डिबेट में चर्चा के दौरान उन्हें पार्टी का पक्ष पेश करते अक्सर देखा जा सकता है।

प्रवक्ता की भूमिका नहीं त्याग पाईं

किशोरी पेडणेकर महापौर बनने से पहले प्रवक्ता थीं। इस पद पर रहते हुए वे अपने दल की भूमिका रखती थीं और कई बार तो सुरमयी आरोपों (मुंबई तुला बीएमसी वर भरोसा) का उत्तर भी उन्होंने संगीतमय ढंग से दिया। इन उत्तर-प्रत्युत्तरों में उनका अंदाज औरों से हमेशा अलग रहा है। लेकिन महापौर बनने के बाद पद तो बदल गया पर वे अपनी भूमिका नहीं बदल पाईं। मनपा नेताओं के अनुसार महापौर को अपने समक्ष लाए गए मुद्दों का उत्तर देने के लिए सभागृह नेता विशाखा राऊत या अन्य अनुभवी नगरसेवकों में से किसी को नियुक्त करना चाहिए। महानगरपालिका में सबसे अधिक मुद्दे स्थाई समिति के अध्यक्ष के पास होकर आगे बढ़ते हैं। इसके पहले स्थाई समिति के अध्यक्ष पद पर रविंद्र वायकर, राहुल शेवाले, यशोधर फणसे भी रहे हैं। वे भी उस समय टीवी डिबेट में सम्मिलित होते थे। इस इतिहास को देखते हुए स्थाई समिति के अध्यक्ष को प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी जा सकती थी। लेकिन महापौर और पार्टी प्रवक्ता का पद एक दूसरे के प्रतिकूल रहते हुए भी महापौर उसे निभा रही हैं।

महापौर निवास ही बना कार्यालय

कोरोना काल में महापौर अपना कार्यालय भायखला के रानीबाग से या पेंग्विन कक्ष से संचालित कर रही थीं। लेकिन जब सबकुछ शुरू हो गया और मनपा मुख्यालय में सभी समिति के अध्यक्ष और अधिकारी आने लगे तब भी महापौर किशोरी पेडणेकर रानीबाग के महापौर निवास से ही अपना कार्य संचालन कर रही हैं।

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