दुकानों में मराठी बोर्ड अनिवार्य किए जाने के निर्णय को मानने से इनकार? व्यापारी संगठन ने कही ये बात

महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार के दुकानों में मराठी भाषा में बोर्ड लगाना अनिवार्य किए जाने के फैसले का विरोध शुरू हो गया है।

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महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के दुकानों और प्रतिष्ठानों में मराठी में बोर्ड लगाना अनिवार्य करने का निर्णय लिया है। उसने 12 जनवरी को कैबिनेट की बैठक में पूर्व के अधिनियम में संशोधन करते हुए यह निर्य लिया है, लेकिन व्यापारियों ने सरकार के इस निर्णय को वोट पॉलिटिक्स बताते हुए विरोध किया है। फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के नेता
वीरेन शाह ने इस बारे में एक बयान जारी कर कहा है कि सरकार का यह निर्णय बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें उसने बोर्ड लगाने के बारे में निर्णय लेने का अधिकार दुकान के मालिकों को दिया है।

वोट की राजनीति
वीरेन शाह ने अपने बयान में कहा है कि मुंबई जैसे महानगर में इस तरह का निर्णय लेना उचित नहीं है। उन्होंने इसे आने वाले मुंबई महानगरपालिका के चुनाव से जोड़ते हुए वोट पॉलिटिक्स बताया है। उन्होंने कहा है कि यह व्यापारियों के अधिकारों का उल्लंघन है और सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए। शाह ने कहा कि इससे पहले 2001 में भी इस तरह का निर्णय लिया गया था, जिस पर दायर याचिका में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ फैसला दिया था। न्यायालय ने बोर्ड किस भाषा मे लगाना है, यह तय करने का अधिकार व्यापारियों को दिया था।

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कोरोना संकट से व्यापारी परेशान
वीरेन शाह ने कहा कि पिछले दो साल से अधिक समय से कोरोना के कारण व्यापारी पहले से ही परेशान हैें और आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में वोट पॉलिटिक्स के लिए सरकार ने इस तहर का निर्णय लेकर उनकी परेशानी बढ़ाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि व्यापारी सरकार के इस निर्णय को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।

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