बड़ा फैसलाः दो बहनों को दी गई फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदला! जानिये, क्या है पूरा मामला

18 जनवरी को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर की दो बहनों को सुनाई गई फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

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बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 18 जनवरी को एक महत्वपूर्ण मामले में अपना फैसला सुनाया। महाराष्ट्र के कोल्हापुर की दो बहनों को सुनाई गई फांसी की सजा को उसने आजीवन कारावास में बदल दिया। इन दोनों बहनों के नाम रेणुका शिंदे और सीमा गवित है। इन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन 18 जनवरी को उच्च न्यायालय ने उस सजा को बदलते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इन बहनों को फांसी की सजा कोल्हापुर के एक न्यायालय ने 1990 और 1996 के बीच 14 बच्चों के अपहरण और उनमें से 9 की हत्या का दोषी ठहराते हुए सुनाई थी।

 न्यायालय ने फैसले के साथ की यह टिप्पणी
बॉम्बे उच्च न्यायाल के न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एसवी कोतवाल की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि महाराष्ट्र और केंद्र सरकार ने उनकी मौत की सजा को पूरा करने में काफी देरी कर दी और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ। पीठ ने कहा कि सरकारी अधिकारियों, विशेष रुप से राज्य सरकार ने मामले की गंभीरता से अवगत रहने के बावजूद लापरवाही बरती, प्रोटोकॉल में देरी की और राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किए जाने के बाद भी महिलाओं को सात साल पहले दी गई फांसी की सजा पर अमल नहीं किया।

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13 बच्चों का अपहरण और उनमें से 9 की हत्या का मामला
इन दोनों बहनों के अपराध की बाद करें, तो वह काफी जघन्य और अमानवीय है। रेणुका शिंदे और सीमा गवित को 19090-98 के बीच कोल्हापुर जिले और आसपास के क्षेत्रों से 14 बच्चों के अपहरण और उनमें से 9 की हत्या के लिए दोषी पाया गया था। बच्चों के अपहरण और हत्या में दोनों की मां अंजनाबाई भी शामिल थी। हालांकि मुकदमा शुरू होने से पहले ही 1997 में उसकी मौत हो गई थी।

इस तरह चला मुकदमा

-2001 में कोल्हापुर ट्रायल कोर्ट ने दोनों बहनों को मौत की सजा सुनाई ।

-2004 में उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकार रखा।

-वर्ष 2006 में यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। वहां अपील को खारिज कर दिया गया।

-वर्ष 2014 में राष्ट्रपति ने दया याचिका को खारिज कर दिया।

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