मुंबई महानगरपालिका आयुक्त इकबालसिंह चहल की मौजूदगी में राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने समुद्र के खारे पानी को पीने लायक बनाने के प्रोजेक्ट स्थापित करने का ऐलान किया है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि समुद्र के पानी को मीठा बनाने की अपेक्षा सिवेज वॉटर का शुद्धीकरण कर पीने के छोड़कर अन्य कामों में इस्तेमाल करने योग्य बनाना ज्यादा बेहतर होगा। उनका तर्क है कि 15 वर्षों में सिवेज वॉटर के शुद्धीककण केंद्रों का काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है, अगर ये काम पूरा हो जाता तो समुद्र के खारे पानी को मीठा बनाने की जरुरत नहीं पड़ती थी।
16 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट
बता दें कि अब से पहले भी पिछले करीब 17 वर्षों में तीन बार इस प्रस्ताव पर चर्चा हो चुकी है, लेकिन ये प्रक्रिया काफी महंगी होने के कारण इसे हर बार ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस प्रक्रिया में बिजली की खपत भी बड़े पैमाने पर होने की बात कही जा रही है। अगर इसका संचालन सौर ऊर्जा से किया जाता है तो भी यह काफी महंगा पड़ेगा। 16,000 करोड़ के इस प्रोजक्ट में समुद्र के खारे पानी को पीने लायक बनाने में प्रति हजार लीटर 50 रुपए खर्च आने की बात कही जा रही है, जबकि फिलहाल मुंबईकरों को जो पीने का पानी सप्लाई किया जाता है,उसकी कीमत प्रति हजार 12 रुपए आता है।
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
महानगरपालिका के सेवानिवृत्त जल अभियंता टीवी शहा ने बताया कि मुंबई के समुद्री किनारे काफी गंदे और अस्वच्छ हैं। इसके साथ ही समुद्र का पानी भी खूब प्रदूषित है। इसलिए समुद्र के काफी अंदर से पानी का उपयोग करना होगा। उन्होंने बताया कि समुद्री पानी में क्षार की मात्र 35 हजार टीडीएस है। इसका मतलब एक लीटर पानी को 10 ग्राम नमक होता है। इसलिए इसके शुद्धीकरण में 50 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाएगा। इसके आलावा भी समुद्र के पानी में अन्य तरह के भी रसायन मौजूद रहते हैं। कुल मिलाकर समुद्र के पानी को पीने योग्य बनाना काफी खर्चीला काम है। इससे बेहतर वॉटर सिवेज प्लान के पानी को शुद्ध करना ज्यादा कम दर पर उपलब्ध हो सकता है। उन्होंने बताया कि सिंगापुर में पानी की कटौती के दौरान समुद्र के पानी को पीने योग्य का इस्तेमाल किया जाता है।
सिर्फ कोलोबा का सिवेज वॉटर का शुद्धीकरण केंद्र कर रहा है काम
बीएमसी की ओर से मुंबई में पानी की किल्लत को दूर करने के लिए सिवेज वॉटर को शुद्ध करने के प्रोजक्ट की प्रक्रिया को 2005 में शुरू किया गया था। लेकिन फिलहाल कोलाबा को छोड़कर कोई भी प्लांट काम नहीं कर रहा है। बता दें कि वॉटर सिवेज में हर दिन 2800 मिलियन लीटर पानी बर्बाद होता है। इस पर प्रक्रिया कर 2 हजार मिलियन लीटर पानी इस्तेमाल करने योग्य बनाया जा सकता है। मुंबई के कोलाबा में हर रोज 37 मिलियन लीटर क्षमता का केंद्र काम कर रहा है।