अफगानिस्तान में चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार को तालिबान के अपदस्थ करने के बाद से वहां हालात बदतर होते जा रहे हैं, वहीं अफगान भूमि एक बार फिर से आतंकियों और आतंकी संगठन के लिए पनाहगाह बनने लगा है। इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान पर वादाखिलाफी करने का आरोप लगाया है।
संयुक्त राष्ट्र का दावा
संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में दावा किया गया कि तालिबान की सरपरस्ती में अलकायदा समेत विभिन्न आतंकी संगठनों के लिए अफगानिस्तान को सुरक्षित पनाहगार बना सकता है। हाल के दिनों के मुकाबले अब आतंकी संगठनों को वहां हर तरह की आजादी मिल रही है। इस बीच, तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के तथ्यों से इनकार किया है। रिपोर्ट में कहा गया कि तालिबानी शासन में अलकायदा और आइएस जैसे आतंकी संगठन वहां फलफूल रहे हैं। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं के जाने के बाद करीब छह महीने में अफगानिस्तान में आतंकी संगठनों के लिए माहौल बेहद अनुकूल हो गया है।
ये आतंकी सरगना सक्रिय
विशेषज्ञों के अनुसार बिन लादेन का सुरक्षा संयोजक रहे अमीन मुहम्मद अल हक साम खान अगस्त के अंत में अफगानिस्तान लौट आया। इसी तरह बिन लादेन का बेटा अब्दुल्ला भी अपने तालिबानी मित्रों से मिलने अक्टूबर में अफगानिस्तान आया था। इसके अलावा, अलकायदा आतंकी अयान अल-जवाहरी भी जिंदा बताया गया है और उसे पिछले साल जनवरी में वहां देखा गया है।
तालिबान ने रोकने के लिए नहीं उठाया कदम
विशेषज्ञ दल का कहना है कि तालिबान ने देश में विदेशी आतंकियों की रोकथाम के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया है। इसके विपरीत उन्हें कुछ भी करने की अत्यधिक आजादी मिली हुई है। जबकि तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से यह वादा किया है कि वह अफगानिस्तान में आतंकवाद को नहीं पनपने देगा।
पहले भी रहा है तालिबान राज
इससे पहले भी तालिबान ने वर्ष 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में शासन किया है। उस दौरान भी अलकायदा और आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन की खासी मदद की गई थी। यहीं से ओसामा ने अमेरिका पर आतंकी हमले की साजिश रची थी।