जेलों में बंद नाबालिग बच्चों को लेकर उच्च न्यायालय ने दिया यह आदेश!

उच्च न्यायालय ने कहा कि उसकी ओर से 11 मई 2012 को जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। उन दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस हर छह महीने पर न्यायालय में रिपोर्ट दाखिल करेगी।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) को निर्देश दिया है कि वो दिल्ली की जेलों में बंद नाबालिग बच्चों के बारे में दो हफ्ते में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भांभानी की बेंच ने नाबालिग बच्चों को जेलों में बंद नहीं करने को लेकर 2012 के दिशा-निर्देश के अनुपालन के संबंध में रिपोर्ट तलब किया।

इस बात को लेकर न्यायालय ने जताई नाराजगी
उच्च न्यायालय ने कहा कि उसकी ओर से 11 मई 2012 को जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। उन दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस हर छह महीने पर न्यायालय में रिपोर्ट दाखिल करेगी। इस रिपोर्ट की प्रति दिल्ली पुलिस राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग और दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भी देगी। न्यायालय ने ये आदेश उन आंकड़ों पर दिया, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली के तिहाड़ जेल में पिछले पांच सालों में करीब 800 नाबालिग बच्चे बंद हैं। न्यायालय ने इस आंकड़े पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि गिरफ्तार व्यक्ति को थाने में लाते वक्त उसकी उम्र का पता लगाने की प्रक्रिया शुरू करने का दिशा-निर्देश जारी करेगा।

पहले की सुनवाईः
पहले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने दिल्ली सरकार से पूछा था कि वो यह बताए कि पिछले पांच वर्षों में वयस्कों के लिए जेल से कितने बच्चे जुवेनाइल जस्टिस होम्स में ट्रांसफर किए गए। सुनवाई के दौरान एक वकील ने सुझाव दिया था कि पुलिस थानों पर अर्ध न्यायिक वालंटियर की तैनाती की जाए ताकि वो गिरफ्तार लोगों की मदद कर सकें। इसके अलावा अरेस्ट मेमो में कुछ खास प्रविष्टियां जोड़ने का सुझाव दिया गया था ताकि गिरफ्तार होने वाले की उम्र का पता लगाया जा सके। उन्होंने कहा था कि सभी मजिस्ट्रेट जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 9(1) और 9(4) के प्रावधान का पूरे तरीके से पालन करें ताकि गिरफ्तार करने के समय अगर कोई व्यक्ति अपने को नाबालिग कहे तो उसे पूछताछ के दौरान सुरक्षित घर में रखा जा सके।

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