झारखंड की क्षेत्रीय भाषा की सूची में उर्दू… ये है विरोध कारण

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झारखंड सरकार को भोजपुरी और मगही भाषा अब प्रांतीय नहीं लगती। लेकिन, उसकी अधिसूचना में उर्दू को स्थान दे दिया गया है। विश्व हिंदू परिषद समेत स्थानीय स्तर पर लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।

विश्व हिन्दू परिषद के झारखंड प्रांत मंत्री डॉ.बिरेन्द्र साहु ने कहा है कि झारखंड सरकार क्षेत्रीय भाषा की सूची से उर्दू को हटाए। झारखंड सरकार इस अधिसूचना को शीघ्र निरस्त करें, अन्यथा बाध्य होकर विश्व हिंदू परिषद आंदोलनात्मक कार्यक्रम चलाएगी।

साहू रविवार को पत्रकारों से बातचीत में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार के कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग की ओर से निकाली गई अधिसूचना में झारखंड प्रांत के सभी जिलों में मैट्रिक तथा इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं में जिला स्तरीय पदों के लिए उर्दू भाषा को क्षेत्रीय भाषा के रूप में रखा गया है, जो असंवैधानिक है।

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अधिसूचना से पता चला
18 फरवरी को झारखंड के मुख्य सचिव की ओर से एक अधिसूचना जारी की गई। जिसमें जिला स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं की सूची है। इस सूची में बोकारो और धनबाद जिले से भोजपुरी और मगही को निकाल दिया गया है। वहीं, उर्दू को राज्य के सभी जिलों की क्षेत्रीय भाषा के रूप जगह मिली है।

उर्दू का इतिहास
उन्होंने कहा कि ”उर्दू” शब्द मूलतः तुर्की भाषा है तथा इसका अर्थ है- ”शाही शिविर” या ”खेमा”(तम्बू)। तुर्कों के साथ यह भाषा भारत में आई है। उर्दू भाषा दिल्ली सल्तनत (1206 -1526) और मुगल साम्राज्य (1526 -1858) के दौरान मुश्लिमों के बीच प्रयोग होती थी। जब दिल्ली सल्तनत ने दक्कन पठार पर दक्षिण में विस्तार किया, तब इस भाषा को दक्षिण भारत के मुश्लिमों द्वारा भी बोली जाने लगी।

उन्होंने कहा जनजातिय एवं क्षेत्रीय भाषा अपने-अपने क्षेत्र का स्थानीय, प्राचीन और परम्परागत भाषा होती है। झारखंड प्रदेश में क्षेत्रीय भाषा के रूप में मुख्यत नागपुरी, खोरठा, पंचपरगानिया एवं कुरमाली है,जो अति प्राचीन भाषा है। जबकि उर्दू एक विदेशी भाषा है। विदेशी आक्रांताओं के द्वारा देश पर आक्रमण के पश्चात साम्राज्य स्थापित कर अपने भाषा को भारत में लागू करने का प्रयास किया गया था। ऐसे में उर्दू किसी भी मायने पर झारखंड के लिए क्षेत्रीय भाषा नहीं हो सकता है।

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