हम सभी को लगता है की टीबी केवल फेफड़े और हड्डियों में होता है तो आपको अधूरी जानकारी ही मालूम है। लेकिन आज कल अब ये नए केस देखे गए हैं, जिनमे टीबी अब दिमाग में भी हो सकता है और यदि ऐसा किसी के साथ होता है तो उसे इस बीमारी को नजर अंदाज नही करना चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप अपने जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं, यह कहना है, क्षय रोग अधिकारी डॉ सुनील मल्होत्रा का।
डॉ मल्होत्रा ने बताया कि फेफड़ों के अलावा भी टीबी कई प्रकार की होती है। इसमें से ही एक होती है, दिमाग की टीबी। ऐसे तो दिमाग की टीबी एक-दूसरे से नहीं फैलती लेकिन, जब फेफड़ों की टीबी से संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता है तो उसके मुंह से निकलीं बूंदे दूसरे व्यक्ति के अंदर प्रवेश कर जाती हैं।
समय पर उपचार जरुरी
डॉ मल्होत्रा ने बताया कि दिमाग में टीबी के मरीजों में करीब 10 फीसदी मरीजों के मतिष्क की नसों में ब्लॉकेज हो जा रहा है। इन मरीजों समय पर उपचार नहीं किया गया तो ब्रेन हैमरेज सहित कई समस्याएं हो सकती हैं। इसमें मरीज की जान जाने का खतरा रहता है। टीबी के मरीजों की एमआरआई और सीएफएल जांच कराकर इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
ये हैं लक्षण
डॉ मल्होत्रा ने बताया कि ब्रेन टीबी के लक्षण शरीर में धीरे-धीरे दिखते हैं। शुरुआत में बेहोशी, चक्कर आना, सिर दर्द बने रहने के साथ थकान, कम तीव्रता का बुखार, उल्टी, चिड़चिड़ापन और आलस जैसी समस्याएं सामने आती हैं। दिनोंदिन ये लक्षण और भी ज्यादा खतरनाक होते जाते हैं।
दिमाग में पहुंच जाता है संक्रमण
डॉ मल्होत्रा ने बताया कि टीबी की वजह से फेफड़े में हुआ संक्रमण धीरे-धीरे दिमाग तक पहुंच जाता है। दिमाग में टीबी से खून को पतला रखने वाले तत्व खत्म हो जाते हैं। सेलेब्रासपाइनल फ्लूड के खत्म होने से भी ब्लाकेज होते हैं। यह दिमाग को खून और पानी देने वाली नसों को प्रभावित करता है। इससे दिमाग की नसों (ओरैटी) में ब्लॉकेज हो जाता है।
इस तरह पड़ता है प्रभाव
इससे धीरे-धीरे आंखों की रोशनी चली जाती है। ब्लॉकेज की वजह से दिमाग डैमेज हो जाता है। लोग टीबी की वजह से आई कमजोरी या टीबी मानकर इसे नजरअंदाज कर देते हैं। कुछ दिन बाद मरीज की मौत हो जाती है। यदि टीबी के साथ न्यूरो संबंधी जांच करके मरीज का इलाज शुरू कर दिया जाए तो यह बीमारी ठीक हो जाती है। इसमें नसों को खोलने वाली, खून को पतला रखने वाली और संक्रमण रोकने वाली दवाएं दी जाती हैं।