सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोना महामारी के दौरान देह व्यापार करने वाली महिलाओं को राशन मुहैया कराने की मांग पर सुनवाई करते हुए सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि ऐसी महिलाओं की पहचान की प्रक्रिया जारी रखें और उन्हें राशन से वंचित न करें। न्यायालय ने कहा कि राज्यों द्वारा दाखिल स्थिति रिपोर्टों में सेक्स वर्कर्स के आंकड़े वास्तविक नहीं हैं।
न्यायालय ने 29 सितंबर 2020 को राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वो देह व्यापार करने वाली महिलओं को सूखा राशन उपलब्ध करवाएं। जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि राज्य सरकारें ऐसी महिलाओं को राशन उपलब्ध कराते समय उनसे पहचान पत्र के लिए जोर न दें। न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या वो कोरोना के संकट के समय ट्रांसजेंडर्स को दी जानेवाली सहायता सेक्स वर्कर्स को भी दे सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि 2011 में न्यायालय ने कहा था उनको भी अन्य लोगों की तरह ही गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। उस समय देश भर के सेक्स वर्कर्स की हालत का अध्ययन करने के लिए न्यायालय ने एक कमेटी का गठन किया था।
कमेटी ने दी थी यह जानकारी
यह याचिका दरबार महिला समन्वय कमेटी ने दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से वकील आनंद ग्रोवर ने न्यायालय से कहा कि अध्ययन के अनुसार देश भर में करीब आठ लाख 68 हजार से ज्यादा देह व्यापार करन वाली महिलाएं हैं, जबकि देश के 17 राज्यों में करीब 62 हजार 137 ट्रांसजेंडर हैं। ट्रांसजेंडर की संख्या के 62 प्रतिशत सेक्स वर्कर्स हैं।
याचिका में की गई है ये मांग
याचिका में कहा गया है कि कोरोना संकट के दौरान मिलनेवाली सहायता बड़ी संख्या में ऐसी महिलाओं को इसलिए नहीं मिल रही है क्योंकि उनके पास पहचान पत्र नहीं है। यह सर्वोच्च न्यायालय के पहले के आदेश का उल्लंघन है। याचिका में कोरोना संकट रहने तक उनको हर महीने सूखा राशन देने, उनके रोजाना के खर्चे के लिए पांच हजार रुपये का कैश ट्रांसफर करने और स्कूल जाने लायक बच्चे होने पर अतिरिक्त ढाई हजार रुपये हर महीने कैश ट्रांसफर करने की मांग की गई है।