कच्चे तेल की कीमत में ऐतिहासिक तेजी, 2008 के बाद पहली बार इतना उछाल

अगर ईरान के कच्चे तेल की सप्लाई शुरू हो जाए तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पर कुछ लगाम लग सकती है।

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रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में जोरदार तेजी आ गई है। पिछले कारोबारी सत्र में कच्चा तेल 139 डॉलर प्रति बैरल के दिन के सर्वोच्च स्तर को पार कर गया है। हालांकि बाद के कारोबारी सत्र में कच्चे तेल की कीमत 125.79 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर सेटल हुई। कच्चे तेल की कीमत का ये स्तर 2008 के बाद का सर्वोच्च स्तर है।

रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव के कारण पिछले करीब डेढ़ महीने से कच्चे तेल की कीमत में तेजी का रुख बना हुआ था लेकिन 24 फरवरी को युद्ध की शुरुआत होने के बाद इसकी कीमत में काफी तेजी आ गई। 6 मार्च को रूस द्वारा आक्रमण तेज कर देने के बाद पिछले कारोबारी सत्र में कच्चे तेल के भाव में जबरदस्त उछाल आया है, जिसकी वजह से ब्रेंट क्रूड 2008 के बाद के सर्वोच्च स्तर तक पहुंच गया है।

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युद्ध के कारण प्रभाव
जानकारों के मुताबिक रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर बाजार की गतिविधियां काफी ज्यादा प्रभावित हुई हैं। इसकी वजह से सोना, चांदी और कच्चे जेल जैसी चीजों के दाम में जबरदस्त तेजी आई है। दुनिया भर के शेयर बाजारों पर कमजोरी का दबाव बन गया है। रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को और सख्त किए जाने के कारण रूस से निर्यात होने वाला कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार तक नहीं पहुंच पा रहा है। इस वजह से कच्चे तेल की कीमत में काफी तेजी आ गई है।

7 मार्च का भाव
7 मार्च के कारोबारी सत्र में कारोबार की शुरुआत होते ही जहां ब्रेंट क्रूड ऑयल उछल कर 139.13 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गया, वहीं वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड 130.50 डॉलर के 14 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है। हालांकि आज के कारोबारी सत्र के अंत में ब्रेंट क्रूड 10.11 डॉलर यानी 8.74 प्रतिशत की तेजी के साथ 125.79 डॉलर के स्तर पर सेटल हुआ। इसके पहले 2008 में कच्चा तेल 147 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक पहुंचा था। 2008 के बाद पहली बार कच्चा तेल 140 डॉलर के करीब पहुंचा है।

रूस से आने वाले कच्चे तेल की आपूर्ति रुकना बड़ा कारण
जानकारों के मुताबिक प्रतिबंधों की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूस से आने वाले कच्चे तेल की आपूर्ति रुक गई है। ऐसी स्थिति में वैश्विक मांग की तुलना में कच्चे तेल की सप्लाई काफी कम हो गई है। रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का उत्पादक है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी हिस्सेदारी काफी मायने रखती है। रूस से आने वाला कच्चा तेल मुख्य रूप से रूप यूरोपीय देश खरीदते हैं लेकिन रूस पर लगाए गए प्रतिबंध के कारण इन देशों ने रूस से कच्चे तेल की खरीद पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जारी
जानकारों का कहना है कि अगर यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जारी रहा, तो आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमत नया रिकॉर्ड बनाते हुए 150 से 185 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक भी पहुंच सकती है। हालांकि कच्चे तेल की कीमत में ये तेजी चरणबद्ध तरीके से आने की उम्मीद जताई जा रही है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में आई तेजी
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में आई इस तेजी का सबसे बुरा असर अपनी अधिकतम पेट्रोलियम जरूरत के लिए आयात पर निर्भर करने वाले भारत जैसे देशों पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। भारत अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार से खरीदा है, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में आने वाली तेजी भारतीय पेट्रोलियम बाजार पर भी काफी असर डालती है।

कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर की बढ़ोतरी
एक मोटे अनुमान के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर की बढ़ोतरी होने से भी भारत में पेट्रोल या डीजल की कीमत में प्रति लीटर 50 से 60 पैसे तक का भार बढ़ जाता है। इस आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले एक-दो दिन में ही भारत में भी सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियां पेट्रोल और डीजल की कीमत में जबरदस्त इजाफा कर सकती हैं।

4 महीने से पेट्रोल-डीजल की कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं
पिछले 4 महीने से पेट्रोल और डीजल की कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। हालांकि इस दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में लगातार इजाफा होता रहा है। ऐसी स्थिति में तेल कंपनियों को अपने संचित नुकसान की भरपाई करने के लिए आने वाले कुछ दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमत में प्रति लीटर 15 से 22 रुपये तक की बढ़ोतरी करना पड़ सकता है।

उम्मीद की किरण
हालांकि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में ईरान के कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति होने का रास्ता खुलने की उम्मीद बनने लगी है। ऐसे में अगर ईरान के कच्चा तेल की सप्लाई शुरू हो जाए तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पर कुछ लगाम लग सकती है। ऐसा होने पर भारतीय बाजार में भी पेट्रोल और डीजल की कीमत से लगने वाला झटका कुछ कम हो सकता है।

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