चीन ने अपने अंतरिक्ष यान को चांद पर उतारा है। उसने चांद से चट्टान के नमूने लाने के उद्देश्य से इस यान को चांद पर उतारा है। वर्ष 1970 के बाद चांद के नमूने इकट्ठा करने का यह पहला अभियान है। चीन का दावा है कि चांगाए-5 अंतरिक्ष यान, निर्धारित स्थान पर सफलतापूर्वक लैंड किया। लैंडर को 24 नवंबर को हैनान द्वीप से लॉन्च किया गया था। इसकी सफलता के बाद चांद पर बस्तियां बसाने में मदद मिलने की बात कही जा रही है। भारत समेत अपनी सीमाओं से जुड़े नेपाल, पाकिस्तान और अन्य देशों की जमीन पर नजरें गड़ाए रखनेवाला ड्रैगन अब चांद पर भी अपना हक जताने की फिराक में है।
चीन का मिशन
लैंडर दो दिन में चांद की सतह से दो किलोग्राम चट्टान और धूल के नूमने इकट्ठा करेगा। उसके बाद नमूनों को कक्षा में भेजा जाएगा और वहां से इन नमूनो को रिटर्न कैप्सूल के जरिए पृथ्वी पर लाया जाएगा। योजना के अनुसार महीने के मध्य में यह अंतरिक्ष यान मंगोलिया में उतरेगा। अगर यह अभियान सफल रहता है तो 1970 के बाद से चांद से चट्टान के ताजा नमूने एकत्र करनेवाला यह पहला सफल अभियान होगा।
खास बातें
- 44 साल बाद अंतरिक्ष यान चांद से नमूने लाएगा
- 2 किलोग्राम मिट्टी लेकर वापस लौटेगा यान
- चीन के दो मिशन चांद की सतह पर पहले से मौजूद
- चेंग-ई-3 नाम का स्पेसक्राफ्ट 2013 में चांद पर पहुंचा था
- चेंग-ई-4 लैंडर और युटू-2 रोवर जनवरी 2019 में चांद पर लैंड किया था
- 22 अगस्त 1976 को रुस का लूना 24 मिशन चांद की सतह पर उतरा था
- लूना 200 ग्राम मिट्टी लेकर वापस लौटा था
23 दिनों का मिशन
चीन का मुख्य अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह के नूमने को एक कैप्सुल में रखेगा। उसके बाद वह उसे पृथ्वी पर रवाना करेगा। इस पूरे मिशन में 23 दिन का समय लग सकता है। इस मिशन को चीन का सबसे महत्वाकांक्षी योजना माना जा रहा है।
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बस्तियां बसाने में मिलेगी मदद
चीन के इस मिशन को सफल होने के बाद वहां की परस्थितियों के बारे में ज्यादा जानकारी मिल सकेगी और वहां बस्तियां बसाने में मदद मिलेगी। इस यान को चांद तक पहुंचने के लिए लांग मार्च-5 रैकेट का इस्तेमाल किया गया । यह रॉकेट तरल केरोसिन और तरल ऑक्सीजन की मदद से चलता है। चीन का यह रॉकेट 187 फुट लंबा और 870 टन भारी है।
उठ रहा है रहस्य पर से पर्दा
चंद्रमा से मानव का जुड़ाव आदिकाल से ही रहा है। बच्चों को चंदा मामा की कहानियां सुनाई जाती रही हैं। महिलाएं उसे देखकर अपने पति की लंबे उम्र की कामना करती हैं। हमारे पुराणों में चंद्रमा को देवता कहा गया है। उसका इतिहाल हजारों करोड़ वर्ष पुराना है। पृथ्वी पर मानव की उत्पति से भी काफी पहले से चंद्रमा के अस्तित्व का पता चलता है। आम इंसानों के साथ ही वैज्ञानिकों के लिए पहेली रहे चांद के बारे में अब तक कई खुलासे हुए हैं।
नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर पहुंचनेवाले पहले वैज्ञानिक
1969 में नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर पहुंचनेवाले पहले वैज्ञानिक थे, जबकि जेने सेरनान( 1972) सबसे आखिरी वैज्ञानिक हैं। अब तक कई वैज्ञानिक चांद पर उतर चुके हैं।
चंद्रमा के बारे में अब तक प्राप्त महत्वपूर्ण जानकारी
- चंद्रमा पर वातावरण नहीं है, इसलिए चंद्रमा पर कोई आवाज सुनाई नहीं देती।
- चंद्रमा पर आसमान हमेशा काला दिखाई देता है।
- चांद पर वातावरण नहीं होने की वजह से सूर्य की पराबैंगनी किरणें और कॉस्मिक किरणें सीधे अंदर पहुंच जाती हैं। इस वजह से चंद्रमा का तापमान 107 डिग्री सेल्सियस हो जाता है।
- वातावरण नहीं होने से रात का तापमान -153 डिग्री सेल्सियस हो जाता है, यानी भयंकर सर्दी हो जाती है। इन दोनों कारणों से चंद्रमा पर जीवों की उत्पति अभी संभव नहीं है।
- धरती से चांद का केवल 60 प्रतिशत हिस्सा दिखाई देता है।
- चांद धरती से हर साल 3.8 सेमी. दूर हो जाता है।
- चांद का गुरुत्वाकर्षण धरती के मुकाबले 6 गुना कम है। यानी धरती पर 60 किलो का इंसान चांद पर मात्र 10 किलो का हो जाएगा।
- चंद्रमा पर छोटे-छोटे भूकंप आते रहते हैं।
- चांद धरती का अकेला प्राकृतिक उपग्रह है।
- सौर मंडल में बहुत सारे चांद मौजूद हैं। उनमें हमारा चांद पांचवा सबसे बड़ा चांद है।
- पृथ्वी का वजन चांद से 80 गुना अधिक है।
- चांद 27 दिन, 7 घंटे, 43 मिनट और 11.6 सेकेंड में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है।
- नासा चांद पर एक परमानैंट स्पेस स्टेशन बनाना चाहता है।
- चांद पूर्व में उगता है और पश्चिम में छिपता है।
- चांद की सतह पर पहाड़, खाई और विशाल गड्ढे मौजूद हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा पर उल्का पिंडों के टकराने से ये गड्ढे बने हैं।
- चांद पर नील आर्मस्ट्रांग के पांव के निशान आज भी मौजूद हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि 10 करोड़ साल तक ये निशान ऐसे ही बने रहेंगे, क्योंकि चांद पर हवा नहीं है, जो उन निशानों को मिटा सके।
- बुज एल्ड्रिन चांद पर पेशाब करेनावाले पहले व्यक्ति हैं।
- अमेरिका ने एक बार चांद पर परमाणु बम गिराने के लिए सोचा था, ताकि विश्व को वह अपनी ताकत दिखा सके।
- अगर चांद नहीं होता तो धरती पर दिन मात्र 6 घंटे का होता।
- चांद की सतह पर बारुद जैसी गंध आती है।