गौरैया दिवस पर विशेषः ड्राइंग रूम में नहीं, गोरैया को दिल में बसाना होगा

कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को गौरैया के नेस्टबॉक्स वितरित किये गए।

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मनुष्य आज अपने ड्राइंग रूम की दीवारों पर गौरैया और अन्य पशु पक्षियों की फोटो व पेंटिंग तो लगा रहा है, लेकिन जब बात जमीनी स्तर पर गौरैया संरक्षण की आती है, तो हमारा उत्साह कमजोर पड़ने लगता है। यह बात गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रूप किशोर शास्त्री ने 20 मार्च को कार्यक्रम के दौरान कही।

गौरैया संरक्षण विषय पर आयोजित जन जागरूकता
गुरुकुल विश्वविद्यालय के आउटरीच कार्यक्रम के अंतर्गत कनखल स्थित स्वामी हरिहरानंद स्कूल में गौरैया संरक्षण विषय पर आयोजित जन जागरूकता कार्यक्रम में प्रोफेसर शास्त्री बतौर कार्यक्रम अध्यक्ष उपस्थित थे। प्रोफेसर शास्त्री ने कहा कि आज मानव विज्ञान के आविष्कारों से एक ओर जीवन को सुख सुविधाओं से युक्त बना रहा है तो वहीं दूसरी ओर तकनीकी से निर्मित खतरनाक हथियार वायुमंडल से ऑक्सीजन और धरती से जीवन छीन रहे हैं।

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प्रोफेसर शास्त्री ने की चिंता व्यक्त
प्रोफेसर शास्त्री ने प्रश्न किया कि यह कैसा विकास है और मानव की इस बौद्धिक क्षमता को आखिर क्या नाम दिया जाए। प्रोफेसर शास्त्री ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज अगर हमारे आंगन की गौरैया सुरक्षित नहीं है तो हमारे स्वयं की सुरक्षा स्वतः ही प्रश्नचिन्ह तो हो जाती है। उन्होंने प्रतिभागियों से अपील की कि वे प्रकृति के साथ निकटता और समन्वय बनाए अन्यथा हमें हमारी भावी पीढि़यां कभी माफ नहीं करेंगी।

प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने गौरैया पर शोधपरक जानकारी की प्रस्तुत 
कार्यक्रम के संयोजक और अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने गौरैया पर शोधपरक जानकारी प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि उनकी शोध टीम उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश एवं सिक्किम के विभिन्न फील्ड स्टेशन पर गौरैया के लिए निरंतर शोधरत है। प्रोफेसर भट्ट ने पावर प्वॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया कि अधिकांश शहरी क्षेत्रों में गौरैया की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है, हालांकि पर्वतीय एवं ग्रामीण अंचलों में अभी भी गौरैया की स्थिति इतनी चिंतनीय नहीं है।

हरित क्षेत्र की कमी से गौरैया का अस्तित्व हो रहा प्रभावित 
उन्होंने जानकारी दी कि शहरी क्षेत्रों में हरित आवरण और झाडि़यों का अभाव गौरैया के लिए संकट पैदा कर रहा है। उन्होंने बताया कि पेड़ पौधों पर मिलने वाले विभिन्न कीटों से गौरैया अपने बच्चों का पेट भरती है और उन झाडि़यों के अंदर वह रात्रि विश्राम करती है, परंतु हरित क्षेत्र की कमी से गौरैया का अस्तित्व प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि गौरैया संरक्षण को लेकर पिछले एक दशक से हिंदुस्तान के सैकड़ों विश्वविद्यालय में से केवल गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ही निरंतर शोध परक जागरुकता अभियान चला रहा है। उल्लेखनीय है कि गौरैया संरक्षण एवं पक्षी संवाद के क्षेत्र में प्रोफेसर दिनेश भट्ट की प्रयोगशाला देश की प्रथम व अग्रणी प्रयोगशाला है।

 मानवीय संवेदनाओं की आवश्यकता
कार्यक्रम के कीनोट स्पीकर और उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पक्षी वैज्ञानिक डॉक्टर विनय सेठी ने गौरैया संरक्षण पर व्याख्यान दिया। डॉक्टर सेठी ने बताया कि गौरैया संरक्षण के लिए धन खर्च किये जाने से कहीं ज्यादा आज मानवीय संवेदनाओं की आवश्यकता है, ताकि गौरैया और प्रकृति से स्वयं ही प्रेम जागृत हो सके।

सभी प्रतिभागियों को गौरैया के नेस्टबॉक्स वितरित
स्वामी हरिहरानंद स्कूल की प्रधानाचार्य हेमा पटेल ने गौरैया संरक्षण कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि इस कार्यक्रम में शिक्षकों की बड़ी संख्या में उपस्थिति यह विश्वास दिला रही है कि हमारे घर आंगन में गौरैया की जल्द ही सुखद वापसी होगी। विशिष्ट अतिथि डॉ. रोमेश शर्मा ने प्रतिभागियों से आह्वान किया कि वे आगे आकर गौरैया संरक्षण की मुहिम से जुड़ें और इसे सफल बनाएं। कार्यक्रम का संचालन अंजू सिखोला ने किया। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को गौरैया के नेस्टबॉक्स वितरित किये गए।

कार्यक्रम में डॉ. ममता पांडे, डॉ. अनुराधा द्विवेदी, डॉ. ऋचा सैनी, डॉ. मनीला, डॉ. पंकज, बिंदिया, गीता चंदेला, आशा विश्वकर्मा, गुंजन जोशी, रश्मि सेठी, ज्योति शर्मा, नेहा वर्मा, सुचेता पुरी, प्रीति, जय कुमार, स्वतंत्र कुमार, वंदनी, उमा परमार, प्रियंका जोशी शिक्षक-शिक्षिकाओं सहित शोध छात्रों में पारुल, आशीष, शिप्रा आदि उपस्थित रहे।

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