कश्मीरी पंडितों पर ढाये गए जुल्म-ओ-सितम पर केंद्रित फिल्म “द कश्मीर फाइल्स” चर्चा में है। इसे दर्शकों का बेपनाह प्यार मिल रहा है। सिनेमा हॉल की सीट पर बैठे-बैठे ही लोगों की आंखों से आंसू टपक रहे हैं। यह सच है कि द कश्मीर फाइल्स ने कश्मीर के हिन्दुओं के साथ हुए भयावह अत्याचार और पलायन के बेहद सुलगते मुद्दे को मौजूदा पीढ़ियों को अवगत कराया है। यही नहीं इस फिल्म ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान का चेहरा दुनिया के सामने बेनकाब किया है। साथ ही जम्मू-कश्मीर में भारत के टुकड़ों पर पलने वाले अलगाववादियों और चंद सत्तालोलुप राजनेताओं की पोल खोल दी है।
यह सच किसी से छिपा नहीं है कि कुछ गद्दार अन्न-नमक खाते भारत का हैं पर गुणगान पाकिस्तान का करते हैं। द कश्मीर फाइल्स इसकी गहरी पड़ताल करती है। इस सबके बावजूद द कश्मीर फाइल्स पर कुछ लोग सारे देश में हाय-तौबा कर इसे प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं। ऐसे लोगों से सवाल पूछा जाना चाहिए कि एक फिल्म से आखिरकार इतना भय क्यों है? आखिरकार 32 वर्ष पहले जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं के पलायन का सत्य सामने आने से कुछ लोगों और कुछ राजनेताओं में इतना भय क्यों है?
170 मिनट की द कश्मीर फाइल्स ने यह सवाल खड़ा किया है कि इतना लंबा समय बीतने के बावजूद इन लोगों को आजतक न्याय क्यों नहीं मिला। बड़ा सवाल यह भी है कि लाखों हिन्दुओं के गुनहगार और खुलेआम दुनिया की जन्नत को कलंकित करने वाले सरकारी सुरक्षा और सुविधाओं के सरंक्षण में क्यों हैं।
इस फिल्म पर राजनीतिक बहस भी शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द कश्मीर फाइल्स के रूप में सत्य के संधान के लिए इसकी पूरी टीम की प्रशंसा कर चुके हैं। चंद लोग इस पर मीन मेख निकाल रहे हैं। इस वक्त सोचने वाली बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं के नृशंस नरसंहार और रूह कंपाने वाले अत्याचार के काले अध्याय को अब तक क्यों छिपाया गया। किसके दवाब में लाखों कश्मीरी हिंदुओं के गुनहगारों को आजतक क्यों सजा नहीं दी गई। पलायन का दंश झेल रहे कश्मीरी हिंदुओं को अब उम्मीद जगी है कि उन्हें इंसाफ मिलेगा। धर्म के नाम राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों की दुकानें बंद होंगी।
इस सच से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि कश्मीर से पलायन कर चुके हिंदुओं के मकान-दुकान, फैक्टरी-खेत बाग-बगीचों पर धर्म विशेष के चंद लोग बेखौफ होकर काबिज हैं। हमारा सिस्टम अब तक मूकदर्शक बना रहा। 2014 में सत्ता में आई राष्ट्रवादी सरकार ने इस दिशा में प्रयास शुरू किए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की दृढ़ इच्छाशक्ति से अनुच्छेद 370 को हटाकर संदेश दिया जा चुका है कि जम्मू-कश्मीर में अमन वापस लाया जाएगा। इस समय लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर जम्मू-कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं की कब्जाई गई संपत्ति कब मुक्त कराई जाएगी। अब वक्त आ गया है कि भारत विरोधी अलगाववादी नेताओं के दिमाग में भरे जहर को ‘मारा’ जाए। ऐसा करना देश और समाज हित में बेहद आवश्यक है। खुलेआम घूम रहे आतंकियों और उनके समर्थक आकाओं को जेलों में ठूंसना भी जरूरी है। यह देश में न्याय के राज को स्थापित करने के लिए बेहद जरूरी है।
दीपक कुमार त्यागी
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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