काम घर भर का और वेतन न पेट भर का, ऐसी है घरेलू कामगारों की रिपोर्ट

घरेलू कामगार वर्तमान की आवश्यकता बन गए हैं। कामकाजी परिवारों में इनके बिना पत्ता भी नहीं हीलता।

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झारखंड एंटी ट्रैफिकिंग नेटवर्क और स्पार्क रांची ने झारखंड के घरेलू काम करने वालों की स्थिति पर सर्वे रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि झारखंड में काम करने वाले अधिकतम अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के हैं। 70 प्रतिशत से ज्यादा डोमेस्टिक वर्कर्स को 3000 प्रति माह से भी कम वेतन मिलता है और मात्र 10 प्रतिशत को 4000 प्रति माह से ज्यादा वेतन मिलता है।

रांची में कांटा टोली स्थित होटल कोरल ग्रैंड कांटाटोली में मंगलवार को झारखंड एंटी ट्रैफिकिंग नेटवर्क और स्पार्क रांची ने झारखंड के घरेलू काम करने वालों की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की।

मौके पर तारामणि साहू ने अनुसूचित जाति और आदिवासी महिलाओं और किशोरियों के ट्रैफिकिंग और उनके कौशल विकास प्रशिक्षण के नाम पर हो रहे शोषण की चर्चा करते हुए कहा कि अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के उत्थान के लिए सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों को मिलकर काम करना होगा।

एक अन्य संस्था की सपना ने घरेलू कामगारों के अधिकार एवं उनके प्रति व्यवहारिकता को लेकर चर्चा की। यह भी जोड़ा कि डोमेस्टिक वर्कर्स जब अपनी समस्याएं लेकर पुलिस और सरकारी संस्थानों के पास जाते हैं, तो अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि कई बार प्रताड़ना के मामलों में उनके ही चरित्र पर सवाल उठाया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने कहा कि सरकारी संगठनों जैसे कि झालसा और लेबर डिपार्टमेंट को डोमेस्टिक वर्कर्स के साथ समन्वय बनाकर उनकी सहायता करनी होगी।

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