एक वेष, एक राष्ट्र, एक संस्कृति, एक रक्त, एक बीज, एक इतिहास और एक भविष्य से बंधे करोड़ो मानव जाति को व्यक्त करने का प्रतीक है, हिंदू जाति का अप्रतिम, अभिनव, हिंदू ध्वज। स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने जब हिंदू ध्वज की निर्मिति को साकार की तो उसके रंग और उसमें बने प्रतीकों का विशेष ध्यान रखा, जो समस्त मानव जाति में श्रेष्ठतम है, यह हिंदू की जाति ही नहीं समस्त हिंदू धर्म का प्रतीक है। चैत्र प्रतिपदा से प्रारंभ होनेवाला नवसंवत्सर हिंदुओं के लिए नवसृजन है, जिसका स्वागत हिंदू कीर्ति और उसकी वैचारिक पृष्ठभूमि के दर्शन बिना अधूरा है, इस दर्शन को विशालता देकर प्रस्तुत करता है, क्रांति शिरोमणि वीर सावरकर द्वारा निर्मित भगवा ध्वज।
ये भी पढ़ें – बाबाराव सावरकर की वो बात मान लेते गांधी, तो बच जाते भगत सिंह और राजगुरु
स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने कहा है,
शस्त्र के बिना धर्म विजय पंगु होता और धर्म के बिना शस्त्र विजय पाशवी होता है।
धर्म और शस्त्र के इसी महत्व को उन्होंने हिंदू के प्रतीक में समायोजित किया और समस्त हिंदू को उसका प्रतीक दिया। स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर निर्मित ध्वज में एक ओर कुंडलिनी है, नीचे की ओर कृपाण है और स्वस्तिक है। इन चिन्हों के समायोजन में हिंदू का विकास, उसका उज्वल भविष्य और संरक्षण निहित है।
भगवा रंग – स्वातंत्र्यवीर ने नीतिमत्ता के एक सार सूत्र का उल्लेख किया है,
तेन त्यक्तेन भुंजिया: मागृध कस्यचिद धनं
यह सार सूत्र सदा सन्मुख रहे, कृपाण से और शक्ति से प्राप्त राज्य, सामर्थ्य कभी अधर्मी और आतातायी लोगों के कलंक से दूषित न हो इसलिए झंडे का रंग गौरिक अर्थात भगवा है।
कृपाण – स्वातंत्र्यवीर लिखते हैं, प्रत्येक धर्म कृपाण की दंडशक्ति के कारण ही सुरक्षित है। हम हिंदुओं ने कृपाण की दंडशक्ति को विस्मृत कर दिया, जो हिंदू जाति की अवनति का मुख्य कारण है। परंतु, अब इस ओर हम दुर्लक्ष नहीं करेंगे। यह समस्त शत्रुओं और मित्रों को बताना होगा, इसलिए हिंदू संगठनों के महान ध्वज पर कृपाण अंकित होना चाहिए।
ओम् कार युक्त कुंडलिनी – इस चिन्ह के विषय में हिंदूहृदयसम्राट स्वातंत्र्यवीर सावरकर लिखते हैं, यह हिंदू जाति का ही नहीं, अपितु हिंदू धर्म का भी प्रतीक है। इसलिए यह उस धर्म की सर्वांगीण उदारता जितना विस्तृत है। यह हिंदूओं का ही नहीं बल्कि, नास्तिकों से आस्तिकों तक, हॉंटेटो से हिन्दू तक, वर्ण-जाति-पंथ-निर्विशेष उसकी छत्रछाया में समाविष्ट होकर परम् श्रेय प्राप्त कर सकें इतना विस्तृत, भव्य, उदार, ऊंचा और दिव्य है। धर्म के दो साधन होते हैं, एक अभ्युदय और निश्रेयस… इसलिए ऐहिक भक्ति, पारलौकिक निश्रेय, अतीद्रिंय का आनंद, परमार्थ का परम गंतव्य दर्शाती है कुंडलिनी जिसे इस ध्वज पर अंकित किया गया है।
मुलाधार में सुशुप्तावस्था में रहनेवाली कुंडलिनी योग साधना से जागृत होती है, जिसके पश्चात अलौकिक सिद्धी और अनुभव अंतिम केंद्र में विद्यमान हो जाता है। इसलिए यह वैदिक सनातनी, जैन, सिख, ब्राम्हो, आर्य समेत सभी धर्म और पंथों को मान्य है, इसलिए इसे ध्वज में अंकित किया गया है।
हिंदुओं की पहचान- गौरिक या भगवा ध्वज में स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा अंकित चिन्ह समस्त हिंदू समाज के लिए प्रेरक है, वीरता की पहचान है और सुरक्षा का बोध है। अत: इस ध्वज को नवसंवत्सर या विक्रम संवत् के प्रारंभ में घर के बाहर प्रकट करना अपनी वीरता, साहस और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता का प्रकटीकरण है। यह हिंदुओं को घेरनेवाले समस्त शत्रुओं के लिए चेतावनी है।
ये भी पढ़ें – ऐसा समर्पण और राष्ट्र कार्य मात्र स्वातंत्र्यवीर सावरकर से ही संभव
ध्वज प्राप्ति स्थान – स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई में हिंदू की पहचान भगवा ध्वज को उपलब्ध कराया गया है। यहां पर हिंदू की इस पहचान को प्राप्त किया जा सकता है, साथ ही भारतीय क्रांति की स्वर्ण लेखनी का भी दर्शन किया जा सकता है, जो लगभग आठ हजार पुस्तकों में सिमटी है। यहां कालापानी कारागृह की प्रतिकृति, कोल्हू की प्रतिकृति भी दर्शनीय है।
Join Our WhatsApp Community