चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन गंगा तट से लेकर मां विंध्यवासिनी के आंगन तक आस्था का संगम दिखा। 3 अप्रैल को मां विंध्यवासिनी के भव्य व दिव्य स्वरुप का दर्शन कर भक्त निहाल हो उठे। ऐसा लगा मानो मां ने बुलाया हो। हर कोई आस्था के पथ पर बढ़ता जा रहा था। 3 अप्रैल को छुट्टी का दिन होने के नाते श्रद्धालुओं की भीड़ अधिक थी। चिलचिलाती धूप के कारण भक्तों को थोड़ी दिक्कत हुई पर मां के दर्शन की लालसा में भक्त श्रद्धा-भाव से पंक्ति में खड़े रहे।
मंत्रों से गूंज उठा आसमान
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः, ब्रह्मचारिणी: हीं श्री अम्बिकायै नम: मंत्र के बीच विंध्यधाम गूंज उठा। कतारबद्ध श्रद्धालु घंटा-घड़ियाल व शंख, नगाड़ा के बीच मां विंध्यवासिनी का जयकारा लगा रहे थे। मां विंध्यवासिनी के ब्रह्मचारिणी स्वरुप का दर्शन पाकर भक्त निहाल हो उठे। तरह-तरह के फूल व आभूषण से मां विंध्यवासिनी का भव्य श्रृंगार किया गया था। मां विंध्यवासिनी का दर्शन-पूजन कर भक्तों ने अष्टभुजा और कालीखोह मंदिर पर भी मत्था टेक त्रिकोण परिक्रमा की। मां विंध्यवासिनी का दर्शन-पूजन करने के लिए शनिवार की मध्य रात्रि से ही श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था। 3 अप्रैल की भोर भक्त गंगा स्नान कर मां विंध्यवासिनी का दर्शन-पूजन करने के लिए मंदिर के गर्भगृह की तरफ जाने वाले मार्गों पर पंक्तिबद्ध हो गए। मंगला आरती के बाद मंदिर का कपाट खुलते ही भक्त दर्शन-पूजन के लिए गर्भगृह में पहुंच गए। मां के गर्भगृह में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंच जाने से धक्का-मुक्की की स्थिति रही। मां की एक झलक पाते ही श्रद्धालु अपने को धन्य मान ले रहे थे। मां विंध्यवासिनी के दर्शन-पूजन के बाद विंध्य पर्वत पर विराजमान मां अष्टभुजा व मां काली के दर्शन को निकल पड़े। कालीखोह व अष्टभुजा मंदिर पर मत्था टेकने के बाद भक्त त्रिकोण परिक्रमा में जुट गए। रामगया घाट स्थित तारा मंदिर पर भी भक्तों ने मत्था टेका।