प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 10 मई को 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उत्कृष्ट साहस का प्रदर्शन करने वाले क्रांतिवीरों को नमन किया।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू
प्रधानमंत्री मोदी ने एक ट्वीट में कहा, “1857 में आज ही के दिन ऐतिहासिक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ, जिसने हमारे देशवासियों को देशभक्ति की भावना ओतप्रोत कर दिया था तथा जिसने औपनिवेशिक शासन की चूलें हिला दी थीं। मैं अदम्य साहस दिखाने के लिये उन सभी को श्रद्धाजंलि अर्पित करता हूं, जो 1857 के संग्राम का हिस्सा थे।”
On this day in 1857 began the historic First War of Independence, which ignited a spirit of patriotism among our fellow citizens and contributed to the weakening of colonial rule. I pay homage to all those who were a part of the events of 1857 for their outstanding courage.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 10, 2022
ये है इतिहास
उन्नीसवीं सदी की पहली आधी सदी के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा हो चुका था। जैसे-जैसे ब्रिटिश शासन का भारत पर प्रभाव बढ़ा, वैसे-वैसे भारतीय जनता के बीच ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष फैला। प्लासी युद्ध के 100 साल बाद ब्रिटिश राज के दमनकारी और अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ असंतोष विद्रोह के रूप में भड़कने लगा। इस चिंगारी ने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। 1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनीतिक कारण ब्रिटिश सरकार की ‘गोद निषेध प्रथा’ या ‘हड़प नीति’ थी। यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति थी। अंग्रेजों ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए। मसलन किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य हड़प नीति के कारण राजघरानों में असंतोष फैल गया। रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर नहीं बैठने दिया गया। हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। आग में घी का काम उस घटना ने किया जब बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों के लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी गई। कुशासन के नाम पर लार्ड डलहौजी ने अवध का विलय करा लिया। इस घटना के बाद जो अवध पहले तक ब्रिटिश शासन का वफादार था, अब विद्रोही बन गया।