जानें, कौन थे पद्मश्री ‘वागीश शास्त्री’, जिनके निधन पर शोकाकुल हैं साहित्य-संस्कृति प्रेमी?

वर्ष 2018 में पद्मश्री से सम्मानित पं. वागीश शास्त्री संस्कृत, साहित्य, व्याकरण, भाषा-वैज्ञानिक और तंत्र विद्या में योगदान के लिए विख्यात थे।

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संस्कृत के जाने माने विद्वान पद्मश्री प्रो.भगीरथ प्रसाद त्रिपाठी ‘वागीश शास्त्री’ के निधन से शहर के साहित्यकार, शिक्षक,संस्कृति प्रेमी शोकाकुल है। 12 मई की सुबह से ही उनके शिवाला स्थित आवास पर लोग शोक संवेदना जताने पहुंचने लगे।

आचार्य वागीश शास्त्री का अंतिम संस्कार पूर्वाह्न में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जायेगा। पुलिस की एक सशस्त्र टुकड़ी पार्थिव शरीर को अन्तिम सलामी देगी। आचार्य के पुत्र आशापति शास्त्री ने बताया कि आवास से अन्तिम यात्रा पूर्वाह्न में निकलेगी।

उल्लेखनीय है कि पद्मश्री प्रो. भगीरथ प्रसाद त्रिपाठी ‘वागीश शास्त्री का 11 मई की देर रात निधन हो गया। 87 वर्षीय पं. शास्त्री काफी समय से बीमार चल रहे थे। रवींद्रपुरी एक्स्टेंशन स्थित निजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

कौन थे पं. वागीश शास्त्री?

  • वर्ष 2018 में पद्मश्री से सम्मानित पं. वागीश शास्त्री संस्कृत, साहित्य, व्याकरण, भाषा-वैज्ञानिक और तंत्र विद्या में योगदान के लिए विख्यात थे। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में 1970 में अनुसंधान संस्थान के निदेशक के पद पर उनकी नियुक्ति हुई। 1996 तक यहां अनुसंधान और अध्यापन कार्य के साथ उन्होंने कई ग्रंथों का लेखन और संपादन किया।
  • राष्ट्रपति के ‘सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट’ के अलावा उन्हें 2014 में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से ‘यशभारती सम्मान’ और इसी वर्ष संस्कृत संस्थान की तरफ से ‘विश्व भारती सम्मान’ भी मिला। वर्ष 2017 में दिल्ली संस्कृत अकादमी की तरफ से उन्हें ‘महर्षि वेद व्यास सम्मान’ दिया गया। 1993 में अमेरिका ने ‘सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट गोल्ड ऑफ ऑनर’ से भी उन्हें नवाजा।
  • इसके अलावा संस्कृत में उन्हें महामहोपाध्याय, काशी रत्न आदि सम्मानों से भी विभूषित किया गया था। मूल रूप से मध्यप्रदेश के सागर जिले के बिलइया ग्राम में 24 जुलाई 1934 में जन्मे भगीरथ प्रसाद त्रिपाठी ने संस्कृत को सरल और लोकभाषा बनाने की दिशा में बड़ा कार्य किया था। उन्होंने 1983 में ‘वाग्योगचेतनापीठम नामक संस्था की स्थापना की। संस्था का उद्देश्य सरल विधि से बिना रटे पाणिनी संस्कृत की शिक्षा देना था। अपने जीवन काल में उन्होंने संस्कृत छात्रों के साथ ही विदेशी शिष्य भी बनाए और कई देशों की यात्रा की। जीवन के अंतिम समय तक वह संस्कृत सेवा में लगे रहे।
  • आचार्य वागीश शास्त्री के निधन पर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने भी शोक जताया है। उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा कि यह दुखद समाचार मर्माहत करने वाला है। पं. शास्त्री का जाना संस्कृत जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। संस्कृत के उत्थान के लिए उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। पद्मविभूषण प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी, प्रो. रामपूजन पांडेय, प्रो. रमेश प्रसाद,विवि के जनसम्पर्क अधिकारी शशिन्द्र मिश्र ने भी शोक जताया है।
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