एक समय दवा बेचना प्रशिक्षित व्यापारियों का कार्य था। समय बदलने के साथ चिकित्सकों ने ही दवा बेचनी शुरू कर दी। डॉक्टर अपनी पसंद से ही दवाओं की पैकिंग करवाकर बेच रहे हैं। इसके बदले में मरीजों से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। इसके लिए उन्हें ना तो मैन्युफेक्चरिंग लाइसेंस लेना पड़ता है और ना ही रिटेल बिक्री का ड्रग लाइसेंस। इन डॉक्टरों द्वारा लिखी गई दवाएं केवल उनके ही क्लीनिक में मिलती है। दवा व्यापारियों ने डॉक्टरों की मनमानी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
डॉक्टरों को विदेशी टूर पर भी भेजना शुरू
पहले डॉक्टरों का काम केवल मरीज को देखना होता था। उनकी लिखी दवाएं किसी भी मेडिकल स्टोर पर मिल जाती थीं। दवाओं को बेचने का काम पूरी तरह से दवा व्यापारियों के हाथों में था। ऐसे में दवा बनाने वाली कंपनियों ने मरीज और दवा के बीच की कड़ी व्यापारी को हटाना शुरू कर दिया। कंपनियों ने सीधे डॉक्टरों से संपर्क साधा और अपनी दवाएं लिखने के बदले महंगे उपहार डॉक्टरों को देने लगे। अधिकतर डॉक्टरों को यह कारोबार भा गया और कंपनियों की पसंद की दवाएं ही डॉक्टरों ने मरीजों को लिखनी शुरू कर दी। कंपनियों ने डॉक्टरों को विदेशी टूर पर भी भेजना शुरू कर दिया।
किसी तरह की लाइसेंस की जरुरी नहीं
दवा कारोबार की बारीकी समझने के बाद कुछ डॉक्टरों ने इससे भी आगे चलकर अपने ब्रांड की दवाएं कंपनियों से बनवानी शुरू कर दी। उन पर अपनी पसंद का मूल्य छपवाया जाने लगा। इन दवाओं को अपने ही क्लीनिक में रख लिया और मरीजों को बेचने लगे। इससे होने वाला सारा मुनाफा डॉक्टरों की जेब में ही जाने लगा। देखा देखी अधिकतर डॉक्टरों ने इस धंधे को अपना लिया। आज मेरठ शहर में बहुत सारे डॉक्टर इस धंधे में लिप्त है और मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। इन डॉक्टरों द्वारा लिखी गई दवाएं उनके क्लीनिक के अलावा कहीं नहीं मिली, क्योंकि ये डॉक्टर केवल दवा का नाम लिखते हैं उसका साल्ट नहीं।
अस्पतालों में ही खुल गए मेडिकल स्टोर
दवा बिक्री में मोटा मुनाफा देखकर अस्पताल संचालकों ने भी अपने परिजनों और चहेतों को मेडिकल स्टोर खुलवा दिए। अस्पताल में भर्ती मरीजों को उनके मेडिकल स्टोर से ही दवाएं खरीदनी पड़ती है। बाहर से दवाएं खरीदने वाले तीमारदारों को अस्पताल संचालक परेशान करते हैं।
लंबे समय से आंदोलन कर रहे दवा व्यापारी
जिला मेरठ कैमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के महामंत्री रजनीश कौशल रज्जन का कहना है कि मेरठ शहर के अधिकतर डॉक्टर खुद ही अपनी दवाएं बेच रहे हैं। जबकि डॉक्टरों को दवाओं के साल्ट लिखने चाहिए। ऐसी दवाओं को जेनरिक दवाएं कहते हैं। जेनरिक दवाएं सभी मेडिकल स्टोर पर कम दामों में लोगों को मिल जाती है। 23 अप्रैल को वाराणसी में हुई संगठन की राष्ट्रीय बैठक में भी इस मुद्दे को उठा चुके हैं। राज्य और केंद्र सरकार के सामने भी यह मामला जा चुका है। डॉक्टरों द्वारा खुद दवाएं बेचने से पीढ़ियों से दवा व्यापार में लगे परिवारों के सामने भी संकट पैदा हो गया है। थोक दवा का कारोबार इससे बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
दवा व्यापारियों की मांग
-दवा जैसी जीवन रक्षक वस्तु को आनलाईन न बेचा जाए।
-एक साल्ट से बनी हुई दवाओं के मूल्य में बहुत अधिक अंतर नहीं होना चाहिए।
-डाक्टरों के क्लीनिक पर केवल जन औषधि वाली दवाइयों को बेचने की अनुमति होनी चाहिए।
-अस्पतालों में केवल ऑपरेशन संबंधी व जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता ही सुनिश्चित की जानी चाहिए।
-एफएसएसआई वाली दवाओं के रेट व क्वालिटी पर खाद्य विभाग का नियंत्रण होना चाहिए।
आईएमए से मिलकर भी जता चुके हैं विरोध
जिला मेरठ कैमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश चंद गुप्ता और महामंत्री रजनीश कौशल रज्जन के नेतृत्व में व्यापारियों का प्रतिनिधिमंडल ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पदाधिकारियों से मिलकर इस मुद्दे को उठाया। आम लोगों के हित में डॉक्टरों से दवाओं के नाम की बजाय साल्ट लिखने की मांग की। आईएमए अध्यक्ष डॉ. रेनू भगत और डॉ. मनीषा त्यागी ने भी दवाओं के साल्ट लिखने पर जोर दिया था, जिससे मरीजों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके।
जन औषधि केंद्रों को लगाया जा रहा पलीता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबों को सस्ता और गुणवत्तापूर्ण इलाज उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना शुरू की। इसके तहत खोले गए जन औषधि स्टोरों पर केवल जेनरिक दवाएं ही बिकती हैं। शुरूआत में यह परियोजना खासी सफल रही, लेकिन दवा के सौदागरों ने इस परियोजना को पलीता लगाने की ठान ली है। प्रधानमंत्री द्वारा डॉक्टरों से ब्रांडेड दवाओं की बजाय जेनरिक दवाएं लिखने की अपील की गई थी, इसके बाद भी डॉक्टर धड़ल्ले से ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। जन औषधि स्टोरों पर बीपी, टीबी, बच्चों की दवाओं की कमी के कारण मजदूरी में आम आदमी ब्रांडेड दवाएं खरीद रहा है।
दवाओं की बहुत कम आपूर्ति
अमीनगर सराय बागपत के जन औषधि केंद्र संचालक राजीव कुमार बताते हैं कि हर बार दवाओं का पर्याप्त ऑर्डर देने के बाद भी बहुत कम दवाएं आ पाती हैं। इससे कई दवाएं खत्म हो गई हैं। जेनरिक दवाएं लोगों को 90 प्रतिशत कम मूल्य पर मिल रही हैं। गरीब लोगों के लिए जन औषधि केंद्र वरदान है। जरूरत उन्हें बचाने की है और पर्याप्त दवा सप्लाई करके इन्हें बचाया जा सकता है।