स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के सदस्य सुनील वालावलकर का निधन

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक ने सुनील वालावलकर के रूप में एक वैचारिक संवाहक खो दिया है।

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वीर सावरकर पर निष्ठा रखनेवाले, हसमुख स्वभाव के सुनील वालावलकर का 68 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे पिछले कुछ काल से स्वास्थ्य संबंधी समस्या से घिरे थे। इस आकस्मिक घटना से स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के पदाधिकरी और सदस्यों में दु:ख है।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष प्रवीण दीक्षित, कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर, कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे, कार्यवाह राजेंद्र वराडकर, सह कार्यवाह स्वप्निल सावरकर ने वालावलकर परिवार के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं। सुनील वालावलकर के परिवार में उनकी पत्नी, पुत्र और पुत्रवधु हैं।

इसे मराठी में पढ़ें – स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारकाचे सदस्य सुनील वालावलकर यांचे निधन

सच्चा सावरकर स्नेही खो दिया

वीर सावरकर के विचारों के प्रबल समर्थक के रूप में सुनील वालावालकर की पहचान थी। समाजसेवा के कार्य में भी वे सक्रिय थे। स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्यक्रमों में उनका योगदान रहता था। वीर सावरकर के जीवन पर आधारित हे मृत्युंजय नाटक के प्रचार प्रसार में सुनील वालावलकर ने अभिन्न योगदान दिया था।
प्रवीण दीक्षित – अध्यक्ष स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक व पूर्व पुलिस महानिदेशक

एक पुराना मित्र खो दिया
स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर ने अत्यंत भावुक होकर संवेदना संदेश दिया है।

सुनील वालावलकर के रूप में मैंने, एक पुराना मित्र खो दिया है। व्यक्तिगत रूप से यह एक अपूरणीय क्षति है। सुनील वालावलकर के निधन से स्वातंत्र्यवीर सावरकर का एक निष्ठावान अनुयायी भी चला गया, यह स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के लिए बड़ी क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और परिजनों को इस दु:ख को सहन करने की शक्ति दें।

शांत, संयमी और मिलनसार व्यक्तित्व के सुनील वालावलकर को वीर सावरकर जयंती के समय देवाज्ञा हुई। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
डॉ.सच्चिदानंद शेवडे – स्वातंत्र्यवीर सावरकर विचार प्रचारक

हे मृत्युंजय का मंचन
सुनील वालावलकर ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन पर आधारित नाटक हे मृत्युंजय को स्कूल,कॉलेज, महाविद्यालयों में पहुंचाने में कड़ा परिश्रम किया। उनका उद्देश्य था यह नाटक देश के सभी भागों तक पहुंचे। उनके इस प्रयास को स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक ने संपूर्ण संसाधन उपलब्ध कराए, जिससे यह नाटक लाखो छात्रों और जन सामान्य तक पहुंचा।

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