रिपोर्ट – महेश सिंह
नई दिल्ली। लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर जून महीने से ही गतिरोध शुरू है। इसे खत्म करने के लिए सेना के कमांडर स्तर पर और राजनीतिक स्तर पर कई दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन सीमा पर चीनी सेना विस्तारवादी नीति के अंतर्गत कई बार भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश कर चुकी है। इस बीच शांति बहाली के लिए एक नई कोशिश के अंतर्गत दोनों देशों के विदेश मंत्रियों एस.जयशंकर और वांग यी के बीच बातचीत हुई। इस बैठक में दोनों ही नेताओं ने गतिरोध खत्म करने के लिए पांच बिंदुओं पर सहमति जताई है। लेकिन चीन की सियासत और सेना की कथनी और करनी में जो अंतर देखने को मिल रहा है ऐसी परिस्थिति में उसपर कितना विश्वास किया जाए ये बड़ा मुद्दा है। तो क्या अब चीन भी अपने आइरन फ्रेंड पाकिस्तान की राह पर चल पड़ा है? ये सबसे बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर चीन को ही देना है।
बता दें कि जिन पांच बिंदुओं पर दोनों देशों के बीच सहमति बनी है, उनमें आपसी मतभेदों को विवाद नहीं बनने देना, विवादवाले स्थानों से सेनाएं पीछे हटाने, विभिन्न स्तरों पर बातचीत जारी रखने, दोनों देशों द्वारा मौजूदा संधियों और प्रोटोकॉल को मानने और कोई देश ऐसा कदम न उठाए जिससे तनाव और बढ़े शामिल है। इन पांच मुद्दों पर अगर सहमति बन गई है तो अब दोनों देशों के बीच विवाद समाप्त हो जाना चाहिए और इसका हल बातचीत के जरिए निकालने की कोशिश की जानी चाहिए। लेकिन ऐसा होगा इस पर समय ही उत्तर देगा।
ड्रैगन पर भरोसा करना डेंजरस
चीन अब तक भारत को कई बार धोखा दे चुका है और उसपर बिलकुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता। इस बारे में विशेषज्ञों की भी यही राय है कि चीन की बातों पर भरोसा करना भारत के लिए बेहद खतरनाक होगा। इसलिए हमें ड्रैगन से हमेशा सावधान रहना चाहिए। ऐसा नहीं है कि भारत उसकी चाल से अनभिज्ञ है। पाकिस्तान और चीन, भारत के दो ऐसे पड़ोसी देश हैं, जिनकी कथनी और करनी में कभी तालमेल नहीं बैठता। ये बात भारत ही नहीं, दुनिया के हर देश को पता है। दरअसल चीन अब बिलकुल पाकिस्तान की राह पर चल निकला है। चीन धोखबाज तो था ही पर अब उसकी सेना सियासी नेतृत्व को भी नहीं मानती जो इन दिनों हुई घटनाओं से सामने प्रस्तुत हो रहा है।
सियासत और सेना में तालमेल नहीं
15-16 जून की रात को गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद पैदा हुई स्थिति के बाद से ही बैठकों का दौर जारी है। झड़प के बाद से जहां कई बार दोनों देशों के बीच कमांडर लेवल की बैठकें हो चुकी हैं, वहीं दोनों देशों के समकक्ष मंत्रियों के बीच भी कई बैठकें हो चुकी हैं। विवाद बढ़ने के बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री तथा स्टेट काउंसलर वांग यी के बीच भी जुलाई में सीमा पर तनाव कम करने को लेकर बातचीत हुई थी। दोनों देश गलवान घाटी जैसी घटनाएं भविष्य में न घटे इस बात पर सहमत हुए थे। इसके आलावा विवादित क्षेत्रों से सेनाएं हटाने और शांति बहाली की दिशा में पहल करने को लेकर भी सहमति बनी थी। लेकिन इस बातचीत के बाद 29-30 अगस्त की रात चीनी सेना ने एलएसी पर चाल चलकर फिर विश्वासघात कर दिया।
दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच भी हुई थी बैठक
मॉस्को में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई करीब ढाई घंटे की बैठक से पहले पांच सितंबर को भी भारत के रक्षा मंत्री राजनथ सिंह और चीन के समकक्ष वेई फेंगे के साथ मॉस्को में ही दो घंटे 20 मिनट लंबी बैठक हुई थी। इस बैठक में भी दोनों देशों के बीच तनाव कम करने को लेकर बनी सहमति के बावजूद नतीजा वही निकला था, ढाख के तीन पात। चीन अबतक अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा है वो लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर तनाव बढ़ाने में लगा हुआ है। अब सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान की तरह चीन की सेना और सियासत में भी कोई तालमेल नहीं है और सेना निर्णय लेने के लिए आजाद है? फिलहाल लग तो ऐसा ही रहा है, लेकिन अगर ऐसा है तो जिस तरह भारत ने पाकिस्तान से बातचीत के सभी दरवाजे बंद कर रखे हैं उसी तरह चीन से भी निपटने की रणनीति अपनानी पड़ेगी।
पहले भी हुए हैं कई समझौते
1993 में एलएसी पर शांति और स्थिरता कामय रखने के लिए समझौता हुआ था। 1993 के समझौते में साफ कहा गया है कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक एलएसी को पार करते हैं तो दूसरी ओर से आगाह किए जाने के बाद वह तुरंत अपने क्षेत्र में चले जाएंगे। इसके बाद फिर 1996 में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे सीमा पर सैन्य क्षेत्र में आत्मविश्वास-निर्माण के उपायों को लेकर समझौता हुआ। फिर 2013 में भी दोनों देशों के बीच समझौते हुए। ये सभी समझौते दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने और तनाव कम करने को लेकर ही हुए। इसके अलावा, साल 2005, 2012 में चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बातचीत बढ़ाने और विश्वास निर्माण के उपायों को लेकर समझौते हुए। भारत का मानना है कि गलवान घाटी में ड्रैगन की कार्रवाई तीन प्रमुख द्विपक्षीय समझौतों-1993, 1996 और 2013- का उल्लंघन है, जिसने विवादित सीमा को ज्यादातर शांत रखा है।
चीन की चिंता
जिस तरह से भारत ने इस्टर्न लद्दाख में तैयारी की है, उससे चीन घबरा गया है। उसे समझ में आ गया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लद्द्ख क्षेत्र में अगर उसने किसी तरह की सैनिक कार्रवाई की तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। वैसे भी चीनी सैनिकों को लद्दाख में पड़नेवाली कड़ाके की ठंढ जैसे इलाके में काम करने का अनुभव नहीं है, जबकि भारतयी सेना के जवान सियाचिन सीमा पर भी माइनस 40 से 70 डिग्री तापमान में भी अपना कर्तव्य निभाने का अच्छा-खासा अनुभव रखते हैं। इसलिए चीन ठंडी के मौसम तक विवादित क्षेत्रों मे किसी भी तरह का विवाद भारत से नहीं पैदा करना चाहता।
भारत की स्थिति मजबूत
29-30 अगस्त को भारतीय सेना के एक्शन के बाद चीन सहम गया है। अगस्त में भारतीय सेना के सूरमाओं ने चीनी सेना को खदेड़ दिया था और दक्षिणी पैंगोंग शो झील की ऊंच्ची चोटियों पर कब्जा कर लिया था। साथ ही अभी तक फिंगर 4 और 8 पर भी भारत का कब्जा है। इसके साथ ही भारतीय वायुसेना के बेड़े में पांच राफेल के शामिल होने से भी भारतीय सेना की ताकत पहले से कई गुनी बढ़ गई है।