दृष्टा साहित्यकार थे स्वातंत्र्यवीर सावरकर

स्वातंत्र्यवीर सावरकर का साहित्य किसी सीमाओं में बंधा नहीं रहा। उनकी लेखनी में स्थान,काल और पात्र के अनुसार बदलाव मिलता है और आवश्यकताओं के अनुरूप कविता, उपन्यास, आत्मचरित्र आदि का समावेश रहा है।

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर सर्वोत्कृष्ट साहित्यकार थे। जिन्होंने, साहित्य के विविध रूप को अपनी लेखनी के माध्यम से प्रस्तुत किया। जहां समाज को उद्वेलित करना था, वहां धगधगते ज्वालामुखी के रूप में क्रांतिकारी विचारों को प्रस्तुत किया। जहां क्रांति ज्योति प्रज्वलित करनी थी, वहां जोसेफ मैजिनी की आत्मकथा को उपलब्ध किया। जहां लोग सुशुप्त हो चुके थे, वहां ‘1857 के स्वातंत्रता संग्राम’ को लिपिबद्ध करके उपलब्ध कराया। दैदिप्यमान सूर्य की भांति विचारों को प्रकट करनेवाले वीर सावरकर ने अपने आराध्य छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए आरती की रचना भी की थी। वे एक ऐसा साहित्यकार थे, जो भविष्य के पहचानते थे। उसी के अनुरूप लिखते थे।

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साहित्य से क्रांतिकार्य
साहित्य के विषय में कहा जाए तो, जो साहित्यकार लिखता है वो चरित्र नहीं लिखता, जो चरित्र लिखता है वो आत्मचरित्र नहीं लिखता, जो आत्मचरित्र लिख पाता है वो निबंध, लेख नहीं लिख पाता। परंतु, वीर सावरकर ऐसे अनूठे साहित्यकार थे जो प्रबंधकार, निबंधकार और उपन्यासकार थे। इसके अलावा वीर सावरकर कवि भी थे। उनकी कविताओं में स्तोत्र है, पौवाडा, पादशाही है। वे उच्च कोटि के साहित्यकार थे, विश्व को हिलाने की शक्ति उनकी लेखनी में थी। वीर सावरकर एक दृष्टा साहित्यकार थे, भविष्य को पहचानते थे। उन्होंने, नासिक में 15 वर्ष की आयु से ही पौवाडा के माध्यम से युवाओं में क्रांतिज्योति प्रज्वलित करने का कार्य शुरू कर दिया था।

ग्यारह सौ वर्षों में ऐसा साहित्यकार नहीं
स्वातंत्र्यवीर सावरकर दस हजार पृष्ठों का इतिहास लिखनेवाले वह इतिहासकार हैं, जिनके समक्ष 600 वर्षों के भारत के इतिहास में इतना विपुल लिखनेवाला कोई अन्य नहीं था। साहित्य के अभ्यासकों की मानें तो आचार्य अभिनव गुप्त के 1100 वर्षों बाद वीर सावरकर ही एकमात्र साहित्यकार और इतिहासकार थे, जिनकी लेखनी में इतना वैविध्य रहा हो।

वीर सावरकर द्वारा लिखित जोसफ मैजिनी के पुस्तक की प्रस्तावना ने स्वातंत्र्य समर में नई जान फूंक दी थी। वह क्रांतिकारियों की गीता मानी जाती थी। ‘1857 का स्वातंत्रता संग्राम’ (1857 चे स्वातंत्र्यसमर) ऐसा ग्रंथ उन्होंने भारत को दिया, जिसने भारत के स्वतंत्रता समर को नई दिशा दे दी। इस ग्रंथ ने अंग्रेजों के विरुद्ध कैसे सैनिकों को खड़ा करके युद्ध छेड़ा जाए, इसका ज्वलंत इतिहास दिया। हिंदुत्व नामक ग्रंथ ने हिंदुओं को नई पहचान दी।

साहित्य जगत में वीर सावरकर बिरले ही थे जिन्होंने कथा, उपन्यास, नाटक, निबंध, कविता, आत्मचरित्र की रचना की। उनकी प्रत्येक रचना का एक संदेश था, विचार था, जिसने लोगों को प्रेरित किया।

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