देश की आर्थिक राजधानी मुंबई समेत महाराष्ट्र के अन्य शहरों में इन दिनों रद्दी समाचार पत्रों की कमी महसूस की जा रही है। इस वजह से रद्दी पेपर्स के दाम पहले से कई गुना बढ़ गए हैं। इसके बावजूद जरुरत के अनुसार उसकी उपलब्धता नहीं होने से विदेशों में अंगूर सप्लाई करने वाले किसानों की परेशानी बढ़ गई है।
दूसरे राज्यों से रद्दी मंगवाने की मजबूरी
मिली जानकारी के मुताबिक रद्दी पेपर की उपलब्धता नहीं होने के कारण नाशिक के किसान गुजरात, मध्यप्रदेश और बेंगलुरू से दुगुने दाम देकर पुराने पेपर मंगा रहे हैं। फलों की सप्लाई करने के लिए उन्हें रद्दी पेपर की जरुरत होती है।
दरअस्ल कोरोना के कारण लॉकडाउन लागू होने से पिछले कई महीनों से समाचार पत्रों की छपाई बंद थी। इस हालत में लोगों के घरों में भी पेपर सप्लाई नहीं हो पा रहा था। इसके साथ ही बाहर के स्टॉल्स पर भी पेपर्स नहीं आ रहे थे। इस वजह से रद्दी पेपर की कमी होने से इसका दाम काफी बढ़ गया है। जबकि विदेशों में अंगूर सप्लाई करनेवाले किसानों के साथ ही अन्य दुकानदारों और अन्य लोगों को भी इसकी जरुरत पड़ती है। इस हालत में उन्हें ज्यादा पैसे देकर रद्दी पेपर की खरीदी करनी पड़ी रही है।
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लॉकडाउन में पेपर की छपाई बंद
बता दें कि पूरे देश में 23 मार्च से कोरोना की वजह से लॉकडाउन लागू किया गया था। कोरोना के डर से लोगों ने पेपर को पढ़ना तो दूर छूना भी बंद कर दिया था। इसके साथ ही समाचार पत्र के कार्यालयों में भी पत्रकार, प्रिंटर्स और अन्य कर्मचारी जा पाने में असमर्थ थे। इसके साथ ही इसे सर्कुलेट करना भी एक बड़ी समस्या थी। इस हालत में कई महीनों तक सभी छोटे-बड़े समाचार पत्रों की छपाई बंद थी।
डिजिटली उपलब्ध
वर्क फ्रॉम होम की सुविधा के कारण ये पेपर डिजिटली उपलब्ध थे, लेकिन पेपर की छपाई नहीं होने से लोगों के पास पुराने पेपर जमा ही नहीं हुए। इस वजह से इसकी किल्लत महसूस की जा रही है। हालांकि अगस्त महीने से फिर से समाचार पत्रों की छपाई शुरू हो गई है। लेकिन पाठकों की कमी के कारण लाखों में छपनेवाले समचार पत्र अब हजारों में छप रहे हैं। इसके साथ ही आर्थिक तंगी के कारण कई समाचार पत्र बंद हो चुके हैं।
कार्यालयों में आ रहे हैं फोन
रद्दी की यह समस्या इतनी बढ़ गई है कि रद्दी खरीदनेवाले लोग घर-घर जाकर रद्दी मांग रहे हैं, वो भी दोगुने दाम पर लेकिन लोगों के घरों में रद्दी न होने से वे निराश हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि कई जरुरतमंद तो प्रिटिंग प्रेस और समाचार पत्रों के कार्यालयों में फोन कर रद्दी मांग रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार अंगूर के निर्यात और देश के अलग-अलग हिस्सों में सप्लाई के लिए हर साल करीब 25 टन रद्दी पेपर की जरुरत होती है।