जम्मू-कश्मीर मे जिला विकास परिषद( डीडीसी) का चुनाव कई मायनों में ऐतिहासक है और देश के लिए शुभ संकेत है। 280 में से फारुक अब्दुला के नेतृत्व वाले सात पार्टियों के गुपकार गठबधन को 101 सीटों पर जीत मिली है, जबकि बीजेपी को 75, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी को 11, कांग्रेस को 25 तथा निर्दलीय ने 66 सीटों पर जीत हासिल हुई है। कहने को तो इस चुनाव में गुपकार गठबंधन ने जीत हासिल की है लेकिन अकेली पार्टी के रुप में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। उसकी ताकत पहले के मुकाबले काफी बढ़ी है।
शुभ,सुखद संकेत
इस चुनाव में पहली बार जहां जम्मू-कश्मीर की सात पार्टियां गठबंधन कर बीजीेपी के खिलाफ मैदान में उतरी थी, वहीं बिना किसी विवाद के यह चुनाव संपन्न हुआ। इससे पहले के चुनावों की अपेक्षा डीडीसी का यह चुनाव इसलिए भी विशेष था, कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद डीडीसी का पहला चुनाव था। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया था। यह अनुच्छेद जम्मू -कश्मीर को अर्धेृ स्वायत्त राज्य के दर्जा देता था। चुनाव की घोषणा के बाद से नतीजे आने के घटनाक्रम पर नजर डालें, तो यह कहा जा सकता है कि देश की जनता और सरकार सभी के लिए यह काफी उत्साहजनक है।
मोदी सरकार के लिए गुड न्यूज
मोदी सरकार के लिए यह चुनाव सकारात्मक उम्मीद जगाती है। कभी चुनावी बहिष्कार के दिन देख चुके जम्मू-कश्मीर में जिला परिषद के चुनाव में लोगों की भागीदारी देखने से एक ओर जहां केंद्र सरकार उत्साहित है। वहीं यह परिणाण से राज्य का जन-जीवन पटरी पर लौटता दिख रहा है। ये सारी चुनाव उस पृष्ठभूमि पर हुए हैं, जिसमें 370 हटाए जाने के बाद घाटी में अनिश्चितता और तमाम तरह की राजनैतिक बयान देखे गए थे। अब सब के बीच राजनीतीिक गतविधियों की कहानी एक सकारात्मक कदम है।
मतदातओं में दिखा उत्साह
यह चुनाव इस लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण है कि इसमें कहीं से भी चुनाव या मतदना के बहिष्कार की आवाज नहीं उठी और राजनैतिक पार्टियों के साथ ही मतदाताओं में भी काफी उत्साह दिखा। आठ चरणों में 280 सीटों के लिए मतदान में मतों का प्रतिशत 51.42 प्रतिशत रहा। इस चुनाव में गुपकार गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी में कांटे की टक्कर रही। जम्मू संभाग में बीजेपी तो कश्मीर घाटी में गुपकार गठबंधन ने जीत दर्ज की, लेकिन अलग-अलग पार्टियों के प्रदर्शन पर नजर डालें तो बीजेपी 75 सीटों पर जीत के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। पहली बार घाटी में कमल का खिलना जम्मू-कश्मीर की राजनीति में बदलाव की ओर इशारा करता है।
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ब्लॉक विकास परिषद( बीडीसी) का चुनाव भी रहा था ऐतिहासिक
इससे पहले 24 अक्टूबर 2019 के अक्टूबर में 1947 के बाद पहली बार कड़ी सुरक्षा के बीच खंड विकास परिषद ( बीडीसी) के चुनाव कराए गए थे। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद यहां कराए गए इस चुनाव का कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने बहिष्कार किया था। इसमें 98.3 प्रतिशत मतदान हुआ था। जम्मू, कश्मीर, लेह और लद्दाख में ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के ये चुनाव हुए थे। प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने इस रिकॉर्ड मतदान पर ट्विट कर खुशी जताई थी। अच्छी बात यह थी कि यह चुनाव पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा था। लेकिन इसमें जम्मू-कश्मीर की महत्वपूर्ण पार्टियों ने भाग नहीं लिया था।
लोकतंत्र और संविधान पर बढ़ा भरोसा
ब्लॉक विकास परिषद के चुनावों को छोड़ दें कि आजादी के बाद से जम्मू-कश्मीर में कराए गए सभी चुनावों के मुकाबले डीडीसी के चुनाव में वोटों का प्रतिशत ज्यादा है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि यहां के लोगों को देश के लोकतंत्र और संविधान में भरोसा बढ़ा है।
- जम्मू-कश्मीर में 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में 44 प्रतिशत मतजना हुआ था। इनमें घाटी की तीन सीटों पर मात्र 19 प्रतिशत मतदान हुए थे।
- 2014 में 49 प्रतिशत मतदान हुआ था। इसमें घाटी में 31 प्रतिशत मतदान हुए थे,जबकि लद्दाख में 71 प्रतिशत लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था ।
पहला चुनाव 1934 में हुआ था
जम्मू-कश्मीर सियासत में ब्रिटिश राज के समय 1934 में पहली बार विधानसभा चुनाव कराए गए थे। इसे प्रजा सभा के नाम से जाना जाता है। इसमें कुल 75 सदस्य थे। इनमें से 33 सदस्य चुनाव जीतक आए थे, जबकि 30 मनोनीत सदस्य थे। इसके साथ ही 12 अधकारी रैंक के सदस्य थे। जम्मू-कश्मीर के इतिहास में पहली बार राज्य स्तर पर चुनाव कराए गए थे। चुनी हुई प्रजा सभा को राज्य के राजा हरि सिंह की सरकार ने स्थापित किया था। इसमें कई पार्टियां शामिल थीं।
इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि जो प्रजा सभा पहली बार बनी थी, तब एक उदारवादी समूह के पास बहुमत था और मुस्लिम कान्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी।
चुनाव के लिए बनाई गई थी समिति
उस समय देश भर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी थी। इसलिए उसी का प्रभाव था। महाराजा हरि सिंह ने 1932 में सर बुरजोर दलाल की अगुआई मे एक समिति बनाई थी। जिसे राज्य में चुनाव कराने का जिम्मा सौंपा गया था। इसी समिति ने 75 सदस्यों की सभा बनाने की सिफारिश की थी। 33 चुने गए सदस्यों में 21 मुस्लिम, 10 हिंदू और दो सीटें सिखों की थीं।