आजादी का यह अमृत महोत्सव वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ”आत्मनिर्भर भारत” का संकल्प सिद्ध करने का सुनहरा वर्ष है। नरेन्द्र मोदी के दृढ़ संकल्प से सरकार के 8 वर्ष पूरा करते-करते देश में तीन बड़ा खाद कारखाना बनकर तैयार है। जिसमें से गोरखपुर कारखाना का कमिशनिंग हो चुका है, जबकि सिंदरी और बरौनी अंतिम चरण में है।
इन तीनों खाद कारखाना से इस वर्ष उत्पादन शुरू हो जाने पर भारत की विदेश से यूरिया मंगाने की जरूरत पर काफी हद तक काबू पा लिया जाएगा, इससे एक ओर राजस्व की बड़ी बचत होगी तो वहीं प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत संकल्प को भी एक बड़ी सिद्धि मिलेगी। इस समय देश में करीब 340 एमएलटी यूरिया की खपत है, जिसमें से 245 एमएलटी यूरिया का उत्पादन घरेलू कारखानों से होता है तथा शेष विदेश से खरीदना पड़ता है। बरौनी सहित तीनों नवनिर्मित कारखाना में फिर से यूरिया उत्पादन शुरू होने से आयात में कमी आएगी।
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”अपना यूरिया” बनेगा औद्योगिक क्रांति का वाहक
आत्मनिर्भर भारत निर्माण की कड़ी में बरौनी में तैयार होने वाला नीम कोटेड ”अपना यूरिया” औद्योगिक क्रांति का वाहक बनने के साथ किसानों के लिए वरदान साबित होगा। बरौनी (बेगूसराय) का उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (हर्ल) ना केवल बिहार की यूरिया जरूरत को पूरा करेगा, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत के लिए वरदान साबित होगा। 8387 करोड़ की लागत से बन रहे नेचुरल गैस आधारित इस कारखाना से प्रत्येक दिन 3850 मेट्रिक टन ”अपना यूरिया” ब्रांड का नीम कोटेड यूरिया (प्रत्येक वर्ष 12.70 लाख एमटी) तथा 22 सौ टन अमोनिया का उत्पादन होगा।
यहां सिर्फ रासायनिक खाद ही नहीं बनेगा, बल्कि स्थानीय सांसद गिरिराज सिंह के प्रयास से लोकल फोर वोकल अभियान के तहत फैक्ट्री के बाहर निर्मित जैविक खाद खरीद कर उसकी भी मार्केटिंग करेगा, इससे स्वरोजगार के आयाम बढ़ेंगे। कारखाना में पर्यावरण एवं जल संरक्षण पर भी प्रधानमंत्री की नजर है। यहां खाद उत्पादन में भूगर्भीय जल का प्रयोग नहीं किया जाएगा, इसके लिए गंगा नदी में टैंक बनाकर पाइप से कनेक्ट कर दिया गया है। खाद निर्माण के साथ-साथ पीने के पानी के रूप में भी गंगाजल को ही फिल्टर कर उपयोग किया जाएगा।
कारखाना का 96.14 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है, शेष कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। जुलाई के दूसरे सप्ताह तक यूरिया एवं अमोनिया प्लांट का तकनीकी कार्य पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद मध्य अगस्त में अमोनिया प्लांट का कमिश्निंग कर कभी भी व्यवसायिक उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। विगत पांच मई को दो स्टेज का ट्रायल सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है। ट्रायल के दौरान खाद बनकर हाथ में आते ही अधिकारियों और कर्मचारियों में खुशी की लहर है।
उल्लेखनीय है कि देश की बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने का संकट आने पर अधिक फसल उत्पादन में किसानों को स्थानीय स्तर पर यूरिया उपलब्ध कराने के लिए पूर्वोत्तर भारत का सबसे पहला खाद कारखाना शुरू हो सका। बरौनी खाद कारखाना में एक नवम्बर 1976 से उत्पादन शुरू हुआ तथा यहां से 1.84 लाख मीट्रिक टन ”मोती यूरिया” उत्पादन कर बिहार और पड़ोसी राज्यों को भेजा जाता था।
सिस्टम की कमजोरी और यूनियनबाजी के कारण 1998-1999 में घाटा दिखाकर उत्पादन बंद हो गया तथा 2002 में इसे स्थाई रूप से बंद कर दिया गया। कई आंदोलन हुए तो 2008 में शिलान्यास किया, लेकिन निर्माण नहीं हो सका। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नजर गई तो 25 मई 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे चालू करने का फैसला लिया। 25 जुलाई 2016 को वित्तीय पुनर्गठन पैकेज के तहत करीब 7169 करोड़ सूद सहित नौ हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ करते हुए पुनरुद्धार को मंजूरी दी।
बिहार स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड को बंद पड़े कारखाना पर बिजली बिल मद में बकाया पांच हजार करोड़ की भरपाई के लिए 56 एकड़ जमीन दे दी गई। आईओसीएल (29.67 प्रतिशत), एनटीपीसी (29.67 प्रतिशत), सीआईएल (29.67 प्रतिशत), एफआईसीएल (7.33 प्रतिशत) एवं एचएफसीएल (3.66 प्रतिशत) का ज्वाइंट वेंचर बनाकर हर्ल निर्माण शुरू करने की प्रक्रिया पूरी की गई।
17 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेगूसराय आकर खाद कारखाना के पुराने कैम्पस में ही बनने वाले नये खाद कारखाना का शिलान्यास किया। कोरोना जैसी लंबी प्राकृतिक बाधा के बावजूद रिकॉर्ड समय में निर्माण कर लिया गया है, कारखाना व्यवसायिक उत्पादन की ओर अग्रसर है।
पर्यावरण का ऐसे रखा जा रहा ख्याल
सबसे बड़ी बात है कि इस कारखाना को चलाने में पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पूरी तरह से प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाएगा। प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा योजना से बिहार, यूपी, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा को गैस पाइप लाइन से एकीकृत करने के परियोजना के तहत बरौनी खाद कारखाना को भी पीएनजी की आपूर्ति करने के लिए पाइप लाइन से जोड़ा जा चुका है।
यूरिया की मारामारी होगी खत्म
कारखाना से चालू होने से एक ओर यूरिया की मारामारी खत्म होगी तो दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन होने के साथ-साथ उद्योग के माध्यम से इकोनॉमी का नया सिस्टम डेवलप होगा। फिलहाल बरौनी खाद कारखाने से निकल रही मशीनों की आवाज, किसानों और बेरोजगारों के बीच नए आशा का संचार कर रही है। हालांकि कारखाना से निकलता धुआं काम मिलने से वंचित लोगों में निराशा का भाव भी फैला रहा है, तो इस से शुरू होने वाली यूनियनबाजी क्रांति के प्रति भी अभी से ही शासन, प्रशासन और प्रबंधन को सतर्क रहना होगा, कागज नहीं धरातल पर।
केंद्रीय मंत्री मांडविया ने दी जानकारी
केंद्रीय स्वास्थ्य, उर्वरक एवं रसायन मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने बताया कि नरेन्द्र मोदी द्वारा शिलान्यास किया गया। आत्मनिर्भर भारत का तीनों खाद कारखाना बनकर तैयार हो गया, बरौनी संयंत्र में ओवर ऑल कुछ काम बाकी है, वह भी अगस्त तक पूरा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी की जब इस बंद पड़े खाद कारखाने पर नजर गई तो हर्ल नाम से ज्वाइंट वेंचर बनाकर निर्माण शुरू किया गया। अक्टूबर तक बरौनी खाद कारखाना से ”अपना यूरिया” का उत्पादन शुरू हो जाएगा।