राफेल और तेजस के बाद भारतीय वायु सेना ने ‘बाय ग्लोबल ऐंड मेक इन इंडिया’ योजना के तहत 1.5 लाख करोड़ से 114 और लड़ाकू विमान हासिल करने पर ध्यान केंद्रित कर दिया है। अमेरिका, फ्रांस, रूस और स्वीडन की रक्षा कंपनियां इस सौदे पर अपनी रुचि दिखा रही हैं। इसके बावजूद ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत 96 विमान भारत में बनाने और शेष 18 विदेशी कंपनी से सीधे आयात किए जाने की योजना है। भारतीय रणनीतिक साझेदार बनने के लिए टाटा, अडानी और महिंद्रा समूह ने दिलचस्पी दिखाई है।
दरअसल, 2007 में ही वायु सेना ने अपने बेड़े में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) की कमी होने की जानकारी देकर रक्षा मंत्रालय के सामने खरीद का प्रस्ताव रखा था। इस पर फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट एविएशन से 126 राफेल फाइटर जेट का सौदा किया जा रहा था। बाद में यह प्रक्रिया रद्द करके 2016 में नए सिरे से सिर्फ 36 राफेल विमानों का सौदा किया गया। फ्रांसीसी कंपनी से पांच साल के भीतर अब सभी 36 विमान भारत को मिल चुके हैं। इस तरह 126 के बजाय 36 विमानों का सौदा होने से वायुसेना के बेड़े में 90 विमानों की कमी बरकरार रही।
वायु सेना को उम्मीद थी कि वह 36 राफेल के शुरुआती ऑर्डर का इस्तेमाल करके 90 और विमान हासिल कर लेगी लेकिन ऐसा न होते देख उसने 114 नए प्रकार के सिंगल इंजन वाले एमएमआरसीए खरीदने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा। भारतीय वायु सेना ने निविदा के लिए रुचि पत्र भी जारी कर दिया है जिसके तहत रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन (आरएफआई) का जवाब फाइटर जेट निर्माण क्षेत्र के अमेरिका, फ्रांस, रूस और स्वीडन के कई बड़े खिलाड़ियों ने कंपनियों ने दिया है। हालांकि, वायु सेना ने पहले ही 83 एलसीए एमके-1ए विमानों का ऑर्डर एचएएल को दिया है, लेकिन इससे लड़ाकू बेड़े की भरपाई नहीं की जा सकती क्योंकि दोनों लड़ाकू विमानों की अलग-अलग क्षमताएं हैं।
लड़ाकू विमानों की अत्यधिक जरूरत
भारतीय वायु सेना को पड़ोसी प्रतिद्वंद्वियों पाकिस्तान और चीन पर अपनी श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए इन 114 लड़ाकू विमानों की अत्यधिक जरूरत है। इसलिए अब भारतीय वायु सेना ने 1.5 लाख करोड़ रुपये से ‘बाय ग्लोबल ऐंड मेक इन इंडिया’ योजना के तहत 114 लड़ाकू विमान हासिल करने की योजना बनाई है जिसमें 18 विमान विदेशी कंपनी से सीधे आयात किए जाएंगे। बाकी 96 लड़ाकू जेट ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना के तहत विदेशी विक्रेता के साथ साझेदारी में भारत में ही बनाए जाएंगे। इसका भुगतान आंशिक रूप से विदेशी मुद्रा और भारतीय मुद्रा में किया जाएगा। भारतीय वायु सेना ने हाल ही में विदेशी विक्रेताओं के साथ बैठक करके उनसे ‘मेक इन इंडिया’ परियोजना को अंजाम देने का ब्लू प्रिंट मांगा है।
‘मेक-इन-इंडिया’ सामग्री हासिल करने में मदद
वायु सेना के एक अधिकारी ने बताया कि योजना के तहत अंतिम 60 विमानों के निर्माण की मुख्य जिम्मेदारी भारतीय साझेदार की होगी और सरकार केवल भारतीय मुद्रा में भुगतान करेगी। भारतीय मुद्रा में भुगतान से विक्रेताओं को परियोजना में 60 प्रतिशत से अधिक ‘मेक-इन-इंडिया’ सामग्री हासिल करने में मदद मिलेगी। बोइंग, लॉकहीड मार्टिन, साब, मिग, इरकुत कॉर्पोरेशन और डसॉल्ट एविएशन सहित वैश्विक विमान निर्माताओं के निविदा में भाग लेने की उम्मीद है। फ्रांस से खरीदे गए राफेल विमानों ने 2020 में शुरू हुए लद्दाख संकट के दौरान चीनियों पर बढ़त बनाए रखने में काफी मदद की है, लेकिन ‘टू फ्रंट वार’ के लिहाज से लड़ाकू विमानों की यह संख्या पर्याप्त नहीं है।
तैयारी में जुटी वायुसेना
विश्व की चौथी सबसे बड़ी भारतीय वायुसेना के मौजूदा हवाई बेड़े में 95 प्रतिशत से अधिक विदेशी विमान और हथियार प्रणालियां हैं लेकिन ‘टू फ्रंट वार’ की तैयारी में जुटी वायुसेना इस समय 114 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की कमी से भी जूझ रही है। वायुसेना लड़ाकू विमानों की इस कमी को ‘मेक इन इंडिया’ के तहत पूरी करके ‘आत्मनिर्भर भारत’ का हिस्सा बनना चाहती है। अमेरिकी, रूसी, यूरोपियन, स्वीडिश कंपनियों ने किसी भारतीय कंपनी की साझेदारी में जेट विमान बनाने के ऑफर रखे हैं। इस करार के तहत भारतीय रणनीतिक साझेदार बनने के लिए टाटा, अडानी और महिंद्रा समूह ने दिलचस्पी दिखाई है।