सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश में बुलडोजर एक्शन पर 24 जून को सुनवाई करेगा। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर जस्टिस सीटी रवि कुमार और जस्टिस सुधांशु धूलिया की वेकेशन बेंच सुनवाई करेगी। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने हलफनामा दाखिल कर जमीयत पर मामले को गलत रंग देने का आरोप लगाया है। सरकार का कहना है कि जिन लोगों पर बुलडोजर एक्शन हुआ है, उनके निर्माण तोड़ने का आदेश कई महीने पहले जारी हुआ था।
अवैध निर्माण खुद हटा लेने के लिए काफी समय दिया गया था। बुलडोजर की कार्रवाई से दंगे का कोई संबंध नहीं है, उसका मुकदमा अलग है। कोर्ट ने 16 जून को यूपी सरकार को नोटिस जारी करके जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अवैध निर्माण हटाने में पूरी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
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सुनवाई के दौरान जमीयत उलेमा हिंद की ओर से वकील सीयू सिंह ने कहा था कि दिल्ली के जहांगीरपुरी में बुलडोजर की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इस मामले में यूपी सरकार को नोटिस दिया गया था लेकिन यूपी में अंतरिम आदेश के अभाव में तोड़फोड़ की गई। सीयू सिंह ने कहा था कि दुर्भावना से जिनका नाम एफआईआर में दर्ज है, उनकी संपत्तियों को चुन-चुनकर ध्वस्त किया गया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम की धारा 27 में देश भर में शहरी नियोजन अधिनियमों के अनुरूप नोटिस देने का प्रावधान है। अवैध निर्माण को हटाने के लिए कम से कम 15 दिन का समय देना होगा, 40 दिन तक अवैध निर्माण नहीं हटने पर ही उसे ध्वस्त किया जा सकता है। पीड़ित नगरपालिका के अध्यक्ष के समक्ष अपील कर सकते हैं, इसके अलावा और भी संवैधानिक उपाय हैं।
यूपी सरकार के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि प्रयागराज और कानपुर में अवैध निर्माण गिराने के पहले सभी प्रक्रिया का पालन किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हमने जहांगीरपुरी में पहले के आदेश के बाद हलफनामा दायर किया है। किसी भी प्रभावित पक्ष ने याचिका दायर नहीं की है। याचिका दायर करने वाला जमीयत उलेमा ए हिंद प्रभावित पक्ष नहीं है।
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