गुजरात के गुलबर्ग सोसाइटी में हुए दंगों मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत मिली है। इस मामले में उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री रहे मोदी को क्लीन चिट को चैलेंज करने वाली याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने 24 जून को गुलबर्गा सोसाइटी दंगा मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीनचिट देने के खिलाफ दाखिल जाकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका खारिज करने का फैसला सुनाया।
इस तरह चली सुनवाई
सर्वोच्च न्यायालय ने 9 दिसंबर, 2021 को इस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीस्ता सीतलवाड पर पिछले 20 वर्ष से गुजरात सरकार को बदनाम करने की साजिश करने का आरोप लगाया था। गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि जाकिया जाफरी से हमें सहानुभूति है। उन्होंने अपने पति को खोया है। लेकिन उनकी पीड़ा का लाभ उठाने की भी एक सीमा होती है। गवाहों को सिखाया-पढ़ाया गया। एसआईटी ने सीतलवाड के खिलाफ साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर निर्दोष लोगों को फंसाने का मुकदमा क्यों नहीं चलाया। मेहता ने कहा था कि 2021 में आरोप लगाकर मामले की दोबारा जांच की मांग की जा रही है। मेहता ने आरोप लगाया था कि सिटीजन फॉर पीस ऐंड जस्टिस और सबरंग इंडिया ट्रस्ट का निजी हितों के लिए इस्तेमाल किया गया। इनके खातों का लंबे समय तक ऑडिट नहीं किया गया।
एसआईटी ने खारिज कर दिए थे सभी आरोप
एसआईटी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने एसआईटी पर लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किया था। उन्होंने कहा था कि एसआईटी ने काफी सूक्ष्मता से जांच की और उसकी जांच में कोई गड़बड़ी नहीं है। रोहतगी ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने गुलबर्गा सोसायटी दंगा मामले में 17 जून, 2016 को फैसला सुनाया था। जाकिया जाफरी ने 2006 में शिकायत की थी। जब जाफरी अपनी एफआईआर दर्ज करवाने की मांग के लिए हाई कोर्ट गईं तो उनके साथ एक एनजीओ की प्रमुख तीस्ता सीतलवाड भी शामिल हो गईं। हाई कोर्ट ने कहा था कि की तीस्ता सीतलवाड का इस केस से कोई लेना-देना नहीं है। जाकिया जाफरी की ओर से कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा था।