जब देश आजाद हुआ था, तब मध्यरात्रि संसद में पं. ओमकार नाथ ठाकुर ने साढ़े नौ मिनट में संगीतबद्ध वंदेमातरम का पूरा गायन किया था, इसके बाद पूरा वंदेमातरम गायन मानो सभी भूल ही गए हैं। जब देश की आजादी पर यह गायन हुआ तो नये संसद भवन में प्रवेश पर वंदेमातरम का पूरा गायन होना चाहिए।
यह आह्वान प्रखर राष्ट्रवादी विचारक पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ ने रविवार को उदयपुर में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित जनमैदिनी से किया और जनमैदिनी ने भारत माता का जयघोष लगाकर अभियान को पूरा समर्थन दिया।
मुगल गार्डन का नाम विवेकानंद गार्डन करने की मांग
लोकतंत्र रक्षा मंच राजस्थान उदयपुर संभाग की ओर से आपातकाल के 47वें वर्ष के उपलक्ष्य में नगर निगम प्रांगण स्थित सुखाड़िया रंगमंच पर आयोजित कार्यक्रम में कुलश्रेष्ठ ने कहा कि वे एक और मुहिम चला रहे हैं, जिसमें यह सवाल है कि जब राष्ट्रपति भवन 1917 में अंग्रेजों के जमाने में बना, तब वहां मुगल गार्डन कहां से आया, वे इस गार्डन का नाम विवेकानंद गार्डन करने का आग्रह सरकार से कर चुके हैं और आमजन में इसके लिए मुहिम छेड़ चुके हैं।
देश को लोगों को सावधान रहने की जरुरत
कुलश्रेष्ठ ने हर व्यक्ति को स्वयं के स्तर पर राष्ट्रहित में सही और गलत का निर्णय करने और उसके सम्बंध में पुरजोर तरीके से अपनी राय व्यक्त करने की जरूरत बताते हुए कहा कि 2 कमरों के मकान से 12 कमरों के मकान में पहुंचने वाले कई नेता अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता करते हैं और सत्य को दबाते हैं। इसका परिणाम भविष्य में राष्ट्र के लिए नुकसानदेह साबित होगा। देश के हर नागरिक को किसी भी तरह के संभावित संकट का भान रहना चाहिए ताकि वह उससे संघर्ष के लिए तैयार हो सके और यह सत्यता से ही संभव है। सत्य के बिना समाज मर जाता है।
वक्फ बोर्ड को लेकर कही ये बात
कुलश्रेष्ठ ने कहा कि आपातकाल के बाद जिसकी सरकार बनी उसके समय में राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक आयोग के गठन जैसा प्रस्ताव आया, जो उस वक्त तो पारित नहीं हुआ लेकिन 1993 में नरसिम्हा राव सरकार ने इसे लागू कर दिया। कुलश्रेष्ठ ने सवाल उठाया कि तब इसका जिस तरह से विरोध होना चाहिए था, वह क्यों नहीं हुआ। इसी तरह, वर्ष 1923 में जब अंग्रेजों ने वक्फ कानून बनाया तब सभी पंथों के आस्था स्थल और सम्पत्तियों के लिए प्रावधान किए गए थे, आजादी के बाद इनमें से धीरे-धीरे सिर्फ एक पंथ को छोड़कर सभी को हटाया जाता रहा, और वर्ष 2013 में तो ऐसे प्रावधान जोड़ दिए गए जिसके तहत वक्फ बोर्ड जिस पर अंगुली रख दे वह सम्पत्ति उसी की मानी जाएगी। भले ही उसके सम्बंध में कोई कागज पेश न किया जाए। जो व्यक्ति या संस्था उस सम्पत्ति को अपना बता रहे हैं, कागज उन्हें पेश करने होंगे वह भी वक्फ बोर्ड के मार्फत बनने वाले ट्रिब्यूनल में ही, जिसकी कमेटी में सभी पदों पर एक ही पंथ के लोगों को रखे जाने का प्रावधान किया गया है। हाईकोर्ट को इससे अलग रखा गया है। कुलश्रेष्ठ ने सवाल उठाया कि इस मसले पर तब के विपक्ष ने क्यों आवाज नहीं उठाई। उन्होंने इस पर आज देश के नागरिकों को जागरूक होने की जरूरत बताई। उन्होंने बताया कि इस नए प्रावधानों के बाद गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पीछे की जमीन और सूरत में म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की बिल्डिंग पर वक्फ अपनी दावेदारी जता चुका है।
नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल का किया समर्थन
कुलश्रेष्ठ ने नुपूर शर्मा व नवीन जिंदल के अशोभनीय माने जा रहे बयान के मामले में भी नुपूर शर्मा का समर्थन करते हुए कहा कि वे मामले के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं जहां तथ्यों पर बहस होगी, लफ्फाजी नहीं होगी, तब सत्य स्वतः बाहर आएगा। कुलश्रेष्ठ ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में भी सत्य को सामने लाने के लिए पूरे देश को एकजुट होने का आह्वान किया और कहा कि जब तक नंदी महाराज को उसके बाबा विश्वनाथ नजर नहीं आते तब तक अभिवादनों में ‘हर-हर महादेव’ का उच्चारण करें। यह आध्यात्मिक गुंजार ऊर्जा बनेगा।
धर्म को लेकर कही ये बात
कुलश्रेष्ठ ने धर्म और पंथ को अलग-अलग परिभाषित करते हुए कहा कि भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति में धर्म का अर्थ कर्तव्यों और दायित्व से जोड़ा गया है न कि किसी खास पूजा पद्धति से, पंथ और मजहब तो कई हो सकते हैं, लेकिन धर्म वह है, जो व्यक्ति को कर्तव्यपथ का बोध कराता है। कुलश्रेष्ठ ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष कोई कैसे हो सकता है, कोई अपने दायित्वबोध से कैसे निरपेक्ष हो सकता है।