गुरु पूर्णिमाः गुरुदीक्षा के लिए दशकों बाद बन रहा है ऐसा अद्भुत संयोग

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह पावन पर्व 13 जुलाई को पड़ रहा है।

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इस साल आगामी 13 जुलाई को गुरुपूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। इस दौरान एक साथ पांच राजयोग बन रहे हैं। दशकों बाद गुरुपूर्णिमा पर ऐसा संयोग बन रहा है। इस बार गुरु पूर्णिमा पर रुचक, भद्र, हंस, और शश राजयोग के साथ बुधादित्य योग भी बनेगा। इस दौरान पंच तारा ग्रहों में दैत्य गुरु शुक्र भी अपने मित्र के घर में बैठा है। यह भी शुभ संयोग ही है कि इस दिन पांच ग्रह मुदित अवस्था में उपस्थिति देंगे। इससे गुरुपूर्णिमा का महत्व और बढ़ गया है। गुरुदीक्षा के लिए इससे अच्छा अवसर लम्बे समय तक नहीं मिलेगा।

कहा गया है कि गुरु बिन भव निधि तरहि न कोई, जो वीरंचि शंकर सम होई। अर्थात् जीवन में जिस तरह नदी को पार करने के लिए नाविक, गाड़ी में सफर करते समय चालक, इलाज के लिए डॉक्टर पर विश्वास करना पड़ता है, उसी तरह जीवन को पार लगाने के लिए सद्गुरु की आवश्यकता होती है और उनके मिल जाने पर उन पर आजीवन विश्वास करना होता है। जिन्होंने आज तक गुरु नहीं बनाया है, वे यह मौका न चूके।

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13 जुलाई को है गुरु पूर्णिमा
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह पावन पर्व 13 जुलाई को पड़ रहा है। पुराणों की कथाओं के अनुसार इसी दिन अनेक ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने पुराणों की रचना की एवं वेदों का विभाजन भी किया, तभी से उनके सम्मान में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा पर इस बार कई दशकों बाद मंगल, बुध, गुरु और शनि की स्थिति चार राजयोग का निर्माण कर रही है। इसके अतिरिक्त बुधादित्य आदि कई शुभ योग बन रहे हैं। इन्द्र योग में लिया गया गुरू मंत्र सर्वदा सर्वत्र विजयी बनाता है।

गुरु की महिमा
ज्योतिषाचार्य ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि सनातन परंपरा में गुरु का नाम ईश्वर से पहले आता है, क्योंकि गुरु ही होता है जो आपको गोविंद से साक्षात्कार करवाता है, उसके मायने बतता है। डॉ. तिवारी कहते हैं- गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि। बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥ अर्थात् जिस तरह पानी को छान कर पीना चाहिए, उसी तरह किसी भी व्यक्ति की कथनी-करनी जान कर ही उसे अपना सद्गुरु बनाना चाहिए, अन्यथा उसे मोक्ष नहीं मिलता और इस पृथ्वी पर उसका आवागमन बना रहता है। कुल मिलाकर सद्गुरु ऐसा होना चाहिए, जिसमें किसी भी प्रकार लोभ न हो और वह मोह-माया, भ्रम-संदेह से मुक्त हो। वह इस संसार में रहते हुए भी तमाम कामना, कुवासना और महत्वाकांक्षा आदि से मुक्त हो।

गुरु को न करें नाराज
डॉ. तिवारी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा पर लोग अपने गुरुओं की पूजा करते हैं, फिर साल भर उनकी सुध तक नहीं लेते। उन्होंने कहा कि भूलकर भी अपने गुरु को नाराज न करें, क्योंकि एक बार यदि ईश्वर आपसे नाराज हो जाएं तो सद्गुरु आपको बचा लेंगे, लेकिन यदि गुरु नाराज हो गए तो ईश्वर भी आपकी मदद नहीं कर पाएंगे। कहने का तात्पर्य सद्गुरु के नहीं होने पर आपकी कोई मदद नहीं कर सकता। गुरु की पूजा का अर्थ सिर्फ फूल-माला, फल, मिठाई, दक्षिणा आदि चढ़ाना नहीं है बल्कि गुरु के दिव्य गुणों को आत्मसात करना है। गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार प्रकट करने दिन है।

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