अब नैनीताल में होगी ड्रैगन फ्रूट की खेती, किसानों की आय बढ़ाने की कोशिश

विभाग ने रामनगर में दो हेक्टेयर, बैलपाडव में एक तथा हल्द्वानी और भीमताल में आधा-आधा हेक्टेयर में खेती करने का प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है।

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किसानों की आय बढ़ाने के लिए उद्यान विभाग नैनीताल जनपद में ड्रैगन फ्रूट की खेती करवाने जा रहा है। जनपद में चार हेक्टेयर भूमि का चयन कर इसकी खेती की तैयारी भी शुरू कर दी गई है। 600 से 700 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिकने वाले ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसानों को 37500 रुपये प्रति हेक्टेयर की सब्सिडी यानी अनुदान भी विभाग की ओर से दिया जाएगा।

जनपद में उद्यान विभाग की ओर से पहली बार बागवानी मिशन के तहत ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाएगी। इसके लिए विभाग ने रामनगर में दो हेक्टेयर, बैलपाडव में एक तथा हल्द्वानी और भीमताल में आधा-आधा हेक्टेयर में खेती करने का प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है।

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उल्लेखनीय है कि ड्रैगन फ्रूट कैक्टस परिवार के पौधे में लगने वाला गुलाबी रंग का एक स्वादिष्ट और महंगा फल है। इसका वानस्पतिक नाम हायलोसेरिस एंडटस है। दिखने में कमल के फूल जैसा भी होने के कारण गुजरात सरकार ने इसे ‘कमलम नाम दिया है, हालांकि कई जगह इसे ‘पिताया भी कहा जाता है। इस फल की खेती मूलतः दक्षिण पूर्व एशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, कैरिबिया, ऑस्ट्रेलिया, मेसो अमेरिका और दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है।

इन राज्यों में होती है खेती
भारत में इसका उत्पादन कर्नाटक, ओडिशा, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और आंध्र प्रदेश में होता है। एंटीऑक्सीडेंट, प्रोटीन, फाइबर, आयरन और विटामिन सी के साथ ही बेहद स्वादिष्ट होने वाले इस फल को ‘सुपर फूड भी कहा जाता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है, मधुमेह को कम करता है और कोलेस्ट्रॉल के लिए भी फायदेमंद होता है।

इस तरह की जाती है खेती
इसकी खेती के लिए लकड़ी या कंकरीट खंभों की जरूरत होती है। ये स्तंभ पौधे को बढ़ने में मदद करते हैं। पौधे कैक्टस की तरह नुकीले होते हैं। इसलिए जानवर भी इन पौधों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। इसकी खेती बंजर भूमि में भी आसानी से की जा सकती है। इसलिए माना जा रहा है कि उत्तराखंड में इसकी खेती जंगली जानवरों से परेशान किसानों के लिए बेहद लाभदायक साबित हो सकती है।

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