एनडीए का मिशन, बढ़ा रहा है एमवीए का टेंशन

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पटना/ मुंबई। चुनाव भले ही बिहार विधान सभा का होने जा रहा है, लेकिन उसकी पटकथा देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में तैयार की जा रही है। एनडीए का यह मिशन महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी का टेंशन बढ़ा रहा है। मुंबई से बिहार तक जिस तरह अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस और उससे जुड़े मामले में राजनीति की जा रही है, उससे बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को फायदा मिलना तय है लेकिन उस वजह से मुंबई में जो महाभारत मचा है, उससे यहां की तीन पहिए वाली सरकार की इमेज निश्चित रुप से खराब हुई है।
दरअस्ल सुशांत केस ने बिहार में एनडीए सरकार को ऐन चुनाव से पहले एक ऐसा सुनहरा मौका दे दिया है, जिसका कोई तोड़ महागठबंधन के पास नजर नहीं आ रहा है।
एनडीए की चमकी छवि, महागठबंधन की हुई बोलती बंद
सुशांत केस में बिहार के पटना में एफआईआर दर्ज होना, वहां की पुलिस का मुंबई आकर बीएमसी से छुपकर मामले की जांच करना, मुंबई पुलिस द्वारा उन्हें सहयोग न किया जाना और फिर बिहार के आईपीएस विनय तिवारी को अपने पुलिसकर्मियों के मार्गदर्शन के लिए आते ही बीएमसी द्वारा क्वारंटीन कर देना, यह पूरी घटना किसी बॉलीवुड फिल्म से कम दिलचस्प नहीं है। इसके बाद भी महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार की इच्छा के विरुद्ध इस मामले की जांच बिहार सरकार की मांग पर सीबीआई को सौंप दिया जाना, ये सब ऐसा लग रहा है, जैसे बिहार की नीतीश कुमार की अगुआई में चल रही एनडीए सरकार के मन मुताबिक हुआ हो। इस मामले के यहां तक के डेवलपमेंट से बिहार की एनडीए सरकार ने जहां सुशांत के पिता और सगे संबंधियों के साथ ही वहां की जनता की मांग को पूरा कर वाहवाही लूटी, वहीं विपक्ष की भी मांग को पूरा कर उसकी बोलती बंद कर दी।
एमवीए सरकार की छवि को पहुंचा नुकसान
इस मामले ने बिहार में जल्द ही होने जा रहे एमवीए विधानसभा चुनाव में एनडीए की स्थिति को मजबूत करने में जहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वहीं महाराष्ट्र की एमवीए सरकार की छवि सिर्फ मुंबई और महाराष्ट्र में ही नहीं पूरे देश में खराब हुई। इस मामले में सरकार में शामिल कांग्रेस और एनसीपी ने ज्यादा मुखरता नहीं दिखाई, लेकिन शिवसेना सांसद- प्रवक्ता संजय राउत ने जिस तरह का स्टैंड लिया, उससे शिवसेना के सम्मान को काफी नुकसान पहुंचा। उन्होंने इस मामले में बयानबाजी कर आ बैल मुझे मार का उदाहरण पेश किया और शिवसेना के साथ ही एमवीए सरकार का भी टेंशन बढ़ा दिया।
बिहार में महाराष्ट्र के सबसे लोकप्रिया नेता बन गए फडणवीस
इस पूरे मामले में शुरू से ही भाजपा नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस संतुलित बोलकर अपनी छवि चमकाने में काफी हद तक सफल रहे। कम से कम बिहार की जनता में तो उनकी छवि बहुत ही शानदार बनी। यही वजह है कि उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाकर पार्टी ने उनकी छवि को भुनाने की कोशिश की है।
फडणवीस एनडीए के स्टार प्रचारक
फिलहाल फडणवीस बिहार में हैं और एनडीए के स्टार प्रचारक बने हुए हैं। बिहार में उनके जैसी छवि महाराष्ट्र के किसी भी नेता की नहीं है। बिहार में भाजपा के साथ ही एनडीए की अन्य पार्टियों जेडीयू, लोजपा और हिंदुस्तान आवामी मोर्च के नेता भी उनका सम्मान करते हैं तथा निश्चित रुप से बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में उनकी छवि का फायदा एनडीए को मिलेगा। भले ही वहां के कुछ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को नितिश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ना और एक बार फिर उन्हें एनडीए का मुख्य मंत्री का चेहरा बनाकर पेश करना पसंद नहीं आ रहा हो, लेकिन उन्हें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि भाजपा को उन्हे अपना नेता स्वीकार करना उसकी मजबूरी है। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी अच्छी तरह जानते हैं। भाजपा के सामने नितिश कुमार का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए सोमवार को जब पीएम मोदी बिहार के लिए 900 करोड़ रुपए सौगात की घोषणा कर रहे थे तब भी उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि एनडीए चुनाव नितिश कुमार के नेतृत्व में लड़ेगी। इससे पहले अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे पी नाड्डा भी यही बात कहकर अपनी पार्टी के नितिश विरोधियों को स्पष्ट संदेश दे चुके हैं कि एनडीए चुनाव नितिश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगी। इनके साथ ही भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी कह चुके हैं कि चुनाव में नीतीश ही हमारे नेता हैं।
कम हुुए एंटी इनकंबेंसी फैक्टर
दरअस्ल सुशांत मामले और उसके बाद के इस केस के डेवलपमेंट ने बिहार में एनडीए सरकार के एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को काफी हद कर कम करने में बड़ी भूमिका निभाई। इस वजह से एनडीए के लिए चुनाव की राह आसान होती नजर आ रही है। एक तरफ महागठबंधन में अभी भी एकजुटता का अभाव नजर आ रहा है, वहीं उनके दबंग नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद द्वारा निधन से चंद दिन पहले आरजेडी छोड़ने की घोषणा से पार्टी के अंदरुनी कलह का पता चलता है। इसके साथ ही हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी आरजेडी को राम-राम कहकर नितिश कुमार के साथ आ गए हैं। अब बच गए लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान। वे सोच रहे थे कि नीतीश कुमार की आलोचना कर वे अपनी पार्टी के लिए सीटें बढ़ा लेंगे। लेकिन जेपी नाड्डा के बिहार में पहुंचते ही उनके तेवर नरम पड़ गए और उन्होंने हथियार डालते हुए ऐलान कर दिया कि उन्हें नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने में कोई परेशानी नहीं है। इस तरह चुनाव की घोषणा से पहले ही बिहार में एनडीए काफी अनुशासित दिखने लगी है और इसका फायदा उसे मिलेगा।
महागठबंधन में तकरार जारी
दूसरी तरफ महागठबंधन की बात करें तो वहां हर दूसरे दिन कोई न कोई नेता पार्टी छोड़ने का ऐलान कर रहा है। सबको लालू एंड फेमिली की पार्टी आरजेडी से ऐतराज है और उन्हें वहां कोई भविष्य नजर नहीं आता। हाल ही में लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप की पत्नी सौन्दर्या यादव ने ऐलान किया है कि वो वहीं से चुनाव लड़ेंगी, जहां से तेज प्रताप मैदान में उतरेंगे। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को अब हार का डर सताने लगा है। इस वजह से वे उल-जलूल निर्णय लेकर पार्टी की छवि को और बर्बाद कर रहे हैं।
बैनर से हटाया लालू-राबड़ी की तस्वीर
हाल ही में आरजेडी के चुनावी बैनर से उन्होंने अपने पिता लालू प्रसाद यादव और अपनी मां राबड़ी देवी की तस्वीरें गायब कर दी हैं। शायद उन्हें भरोसा होगा कि चारा घोटाले में फंसे उनके पिता और मुख्यमंत्री के तौर पर कथित रुप से ठीक से काम नहीं करने के कारण हमेशा आलोचना की शिकर रहनेवाली माता को बैनर से हटा देने से चुनाव में उन्हें जीत मिल जाएगी। लेकिन भविष्य में शायद यह उनका भ्रम साबित होगा क्योंकि लालू यादव की यादवों, दलितों और मुसलमानों में आज भी आरजेडी के किसी भी नेता से बेहतर पहचान है। वे आज भी उन्हें अपना नेता मानते हैं। इसलिए ‘नई सोच, नया बिहार, युवा सरकार, अबकी बार’ का उनका सपना ख्याली पुलास साबित हो।

 

 

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