रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में खुफिया जानकारियों के लिए काम करने वाली ब्रिटिश कंपनी जेन्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि भारतीय वायु सेना ने एक दशक के भीतर अपने पड़ोसियों पाकिस्तान और चीन के खिलाफ हवाई श्रेष्ठता में बढ़त हासिल कर ली है। हालांकि, इसके बावजूद चीन की घरेलू नीतियों और तकनीकी प्रगति की वजह से भारत को अपेक्षा के मुताबिक सामरिक लाभ नहीं मिल रहा है। रिपोर्ट में पाकिस्तान और चीन के साथ दो मोर्चों पर युद्ध की सबसे खराब स्थिति से निपटने के लिए 45 स्क्वाड्रन तक लड़ाकू बल की जरूरत बताई गई है।
ब्रिटिश कंपनी जेन्स के अनुसार दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना के रूप में भारतीय वायु सेना में 1,713 मानवयुक्त विमान, 232 से अधिक निगरानी और मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) शामिल हैं। भारतीय वायु सेना ने पिछले एक दशक में पाकिस्तान के खिलाफ अपने सैन्य हवाई बुनियादी ढांचे और इकाइयों को केंद्रित किया है। जेन्स के मुताबिक 2015 से चीन भारतीय सीमा के पास नए हवाई अड्डों और हवाई अड्डों के निर्माण में तेजी ला रहा है। ब्रिटिश कंपनी जेन्स के अनुसार भारतीय वायु सेना के लगभग 29% विमान (511) उम्रदराज या अप्रचलित हैं। इनमें से अधिकांश लड़ाकू विमान हैं, जिनमें शीत युद्ध के दौर के मिकोयान-गुरेविच मिग-21 और जगुआर डीप-स्ट्राइक विमान शामिल हैं।
यह भी पढ़ें-उत्तर प्रदेश विधान परिषद हुई कांग्रेस मुक्त, ऐसा है गणित
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वायु सेना ने भारत की रक्षा संसदीय स्थायी समिति को दी गई जानकारी में बताया है कि स्क्वाड्रन की स्वीकृत संख्या 42 है जबकि उसके पास मौजूदा समय में 37 स्क्वाड्रन संचालित हैं। इसलिए वायु सेना की योजना तेरहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि (2027) के अंत तक 45 स्क्वाड्रन तक लड़ाकू बल जुटाने की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के पास हाल ही में बोइंग एएच-64ई अपाचे अटैक हेलीकॉप्टरों से लैस एक स्क्वाड्रन और दसॉल्ट राफेल के साथ एक अन्य स्क्वाड्रन शामिल है। इसके अतिरिक्त, वायु सेना के पास हल्के हमले वाले एमआई-17 यूटिलिटी हेलीकॉप्टरों की चार यूनिट भी हैं। रिपोर्ट में यह दिखाया गया है कि वायु सेना वर्तमान में 15 स्क्वाड्रन से लैस पुराने विमानों को भी रिटायर करना चाहता है। इनमें मिग-21, मिग-29 और जगुआर शामिल हैं।
Join Our WhatsApp Community