इस कारण दुनिया में बढ़ रहा है हिन्दी का वर्चस्व!

हिन्दी के वैश्विक प्रसार के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा हर साल ‘‘विश्व हिंदी सम्मेलन’’, ‘‘प्रवासी भारतीय दिवस’’ जैसे कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

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भारत को हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में बड़ी सफलता हासिल हुई है। दरअसल संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बहुभाषावाद पर भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए हिन्दी भाषा को अपनी भाषाओं में समाहित कर लिया है। इससे पहले यूएन में अरबी, चीनी, अंग्रेजी, रशियन, स्पेनिश और फ्रेंच जैसी कुल छह आधिकारिक भाषाएं शामिल थीं। अब इस कड़ी में हिन्दी के अलावा बांग्ला और उर्दू भाषा को भी जगह दी गई है। संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी को पहली बार प्राथमिकता मिलने के कई मायने हैं। इस फैसले से साफ है कि अब यूएन के समस्त कार्यों और उसके उद्देश्यों की जानकारी हिन्दी में उपलब्ध होगी और इससे हिन्दी के वैश्विक प्रसार को निश्चित रूप से एक नया आयाम मिलेगा। एक भाषा के तौर पर हिन्दी न सिर्फ देश की पहचान है, बल्कि यह हमारे सिद्धांतों, मूल्यों और संस्कृति से भी अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है और हमारे जीवन के विभिन्न आयामों को काफी हद तक प्रभावित करती है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज समूची दुनिया में हिन्दी का वर्चस्व बढ़ रहा है।

अपनी सरलता और सुगमता के कारण हिन्दी की गिनती दुनिया की सबसे चुनिंदा वैज्ञानिक भाषाओं के रूप में भी होती है। आज दुनिया में 6500 से भी अधिक भाषाएं बोली जाती है, जिसमें मैंडरिन और स्पेनिश के बाद हिन्दी तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। ऐसे में, यह उपलब्धि दुनियाभर में मौजूद करोड़ों भारतीयों के लिए गर्व का विषय है। हिन्दी मौजूदा समय में देशवासियों के बीच पारंपरिक ज्ञान, ऐतिहासिक मूल्यों और आधुनिक प्रगति के बीच, एक महान सेतु की भूमिका निभा रही है। यदि हिन्दी के संवैधानिक दायरे की बात करें तो इसे भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार करने के साथ ही 11 राज्यों और तीन केन्द्रशासित प्रदेशों में भी राजभाषा का दर्जा दिया गया है और आज देश के करीब 44 प्रतिशत लोग हिन्दी भाषा बोलते हैं।

हिन्दी की वैश्विक स्तर पर व्यापकता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि आज पूरे विश्व में करीब 80 करोड़ आबादी ऐसी है, जो हिन्दी बोल या समझ सकती है। आज भारत के अलावा नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, बांग्लोदश, श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका, कनाडा जैसे कई देशों में हिन्दी भाषा का चलन है। एक दौर में हिन्दी का दायरा इतना विशाल होने के बावजूद लोगों को इसे बोलने या इस भाषा के साथ काम करने में हिचक और शर्मिंदगी महसूस होने लगी थी। वजह साफ थी कि लोगों के लिए हिन्दी में मौके कम हो गए थे और अंग्रेजी भाषा को प्रवीणता और समृद्धि की कुंजी मान ली गई थी। फिलहाल केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए की कोशिश हमेशा इस धारणा को तोड़ने और हिन्दी समेत तमाम भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की रही है। इस कड़ी में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद करना जरूरी है। उन्होंने 1977 में जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री की हैसियत से संयुक्त राष्ट्र के आम सभा अधिवेशन में सबसे पहले हिन्दी में भाषण देते हुए इसे वैश्विक पटल पर एक अलग ही पहचान दी।उन्होंने 1990 के दौर में देश की बागडोर संभालने के बाद भी हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए अपना प्रयास जारी रखा। लेकिन 2004 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद, इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। नतीजन, हिन्दी भाषियों के सामने अवसरों की कमी होने लगी और उनके जीवन में निराशाओं ने घर बना लिया।मगर 2014 में एनडीए की केन्द्रीय सत्ता में जैसे ही वापसी हुई, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में हिन्दी को लेकर

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उचित माहौल बनाने की तैयारी होने लगी। इस कड़ी में संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक मान्यता दिलाने के लिए कई मंचों पर मांग उठी। वर्षों के संघर्ष के बाद साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र में ‘हिंदी @ यूएन’ परियोजना का आगाज हुआ। इस परियोजना का उद्देश्य संघ की तमाम सूचनाओं को दुनियाभर में फैले हिन्दी भाषी लोगों तक पहुंचाना और वैश्विक समस्याओं से जुड़ी चर्चाओं को धार देना था। कुछ समय पहले भारत सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी भाषा के व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए आठ लाख अमेरिकी डॉलर भी सहयोग के रूप में दिए गए थे। इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि आज हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा है। इतना ही नहीं हिन्दी को तकनीकी रूप से अधिक सक्षम बनाने के लिए सरकार द्वारा लर्निंग इंडियन लैंग्वेज विद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (लीला) मोबाइल ऐप को भी लॉन्च किया गया है। इससे लोगों को आसानी से हिन्दी सीखने में मदद मिलेगी।

हिन्दी के वैश्विक प्रसार के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा हर साल ‘‘विश्व हिंदी सम्मेलन’’, ‘‘प्रवासी भारतीय दिवस’’ जैसे कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि आज इतनी पूरी दुनिया में इतनी प्रभावशाली भाषा के रूप में स्थापित हुई है। हमें भविष्य में हिन्दी को और अधिक ऊंचाई देने के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी इसे बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि इसमें ग्रामीण आबादी की भी भागीदारी सुनिश्चित हो सके और वे राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें।

डॉ. विपिन कुमार
(लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं। )

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