न नेट,न मोबाइल, ऑन लाइन एजुकेशन का संकट

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मुंबई। कोरोना संकट की इस घड़ी में प्रति दिन मरीजों का आकड़ा बढ़ता जा रहा है। देश में महाराष्ट्र पहले नंबर पर है और यहां कोरोना मरीजों की संख्या करीब 10 लाख 60 हज़ार हो गई है। पिछ्ले 23 मार्च से मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में स्कूल – कॉलेज बन्द हैं। हालांकि राज्य सरकार के आदेश पर अगस्त माह से स्कूल और कॉलेज में ऑन लाइन क्लास शुरु किए गए हैं, लेकिन इसका प्रतिसाद काफी कम देखने को मिल रहा है। राज्य में मध्यम और गरीब वर्ग के बच्चों को इस ऑन लाइन एजुकेशन से कोई लाभ नहीं मिल रहा है। कहने के लिए स्कूल -कॉलेज में पढ़ाई जारी है लेकिन उसका कोई औचित्य नहीं है। प्राप्त आकंड़े के मुताबिक 60 फीसदी विद्यार्थियों के पास एंड्रॉइड फोन नहीं है। अगर उनके परिवार में किसी के पास है भी, तो वह लेक्चर के समय अपने काम पर चल जाता है, जिससे बच्चे की ऑन लाइन पढ़ाई नहीं हो पा रही है। दूसरी बात, जिनके पास फोन है भी ,नेटवर्क के अभाव में वे लंबे समय तक क्लास रुम से कनेक्ट नहीं हो पाते। अब इसमें लाख टके का सवाल यह है कि यह ऑन लाइन एजुकेशन आखिर किसके लिए? इस सिस्टम से कितने बच्चों को फायदा हो रहा है ।

सरकारी स्कूल के छात्रों को है ज्यादा परेशानी
महाराष्ट्र सरकार के ऑन लाइन एजुकेशन सिस्टम से मनपा और सरकारी स्कूल के बच्चे ज्यादा प्रभावित हो रहें है, खास कर बीएमसी के बच्चों के समझ में ही नहीं आ रहा है । गरीब परिवार के इन छात्रों के पास एंड्रॉइड फोन ना होने से उनकी शिक्षा बिलकुल नहीं हो पा रही है। मनपा स्कूल की प्रिंसिपल रेखा दुबे के अनुसार,”ऑन लाइन एजुकेशन में सबसे ज्यादा नुकसान मनपा स्कूल के बच्चों को हो रहा है। 30 मिनट की ऑन लाइन एजुकेशन में बच्चे कुछ समझ ही नहीं पा रहे हैं। आम तौर पर चार घंटे में एक स्लेबस पूरा होता है, लेकिन अब उसे 30 मिनट मे समेटना है, तो बच्चा कैसे समझ पायेगा । बहुत-से बच्चे ऐसे हैं, जो एक बार लेक्चर से डिसकानेक्ट हो गए तो दोबारा जुड़ते ही नहीं”।

फीस वसूलने का तरीका है ऑन लाइन एजुकेशन
शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर निजी स्कूल-कॉलेज या तो नेताओं के हैं या बड़े व्यवसायियों के हैं। इन स्कूलों की फीस लाखों रुपए होती है। जब से स्कूल-कॉलेज बन्द हैं, तब से ही स्कूल प्रबंधन छात्रों के माता-पिता पर फीस जमा करने का प्रेसर डालना शुरु कर दिया है । परीक्षा शुल्क, बस फीस, कम्प्यूटर फीस और न जाने क्या- क्या फीस भरने के लिए दबाव बनाए जा रहे हैं। एक निजी स्कूल में अपना बच्चा पढ़ाने वाले प्रमोद दुबे ने बताया कि बच्चों को बड़ी मुश्किल से आर्थिक तंगी में 10 हज़ार खर्च कर एंड्रॉइड फोन लेकर दिया लेकिन ऑन लाइन एजुकेशन के बाद बच्चे शिकायत कर रहें है कि लेक्चर समझ मे ही नहीं आता। स्कूल प्रबंधन ने तो अपनी आधी फीस पहले ही जबर्दस्ती भरवा ली है। सरकार ऑन लाइन एजुकेशन के नाम पर सिर्फ लीपा-पोती कर रही है।

ऑनलाइन के अलावा नहीं है विकल्प
स्कूल एजुकेशन मंत्री वर्षा गायकवाड के अनुसार कोरोना संकट की इस घड़ी में सरकार बच्चों को लेकर कोई रिस्क नहीं ले सकती।बच्चों का स्वाध्याय घर पर होता रहे। वे पढ़ाई से दूर न रहें, यह सोच कर ऑनलाइन क्लास शुरु किए गए हैं। मै मानती हूं कि तकनीकी तौर पर काफी शिकायतें आ रही हैं, जिन्हें धीरे-धीरे दूर किया जा रहा है। घर में बच्चे बेकार न बैठे रहें । वे कुछ पढ़ाई करते रहें। यह सोच कर ऑनलाइन क्लास शुरु है। जैसे ही कोरोना की रफ्तार घटेगी,फिर हम सुरक्षा केसाथ स्कूल खोलने पर विचार करेंगे।

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